भलाई के बदले भलाई


कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले दो छात्रों ने अपनी आर्थिक तंगी दूर करने का एक अनोखा तरीका सोंचा। उन्होंने उस समय के महान पियानोंवादक इगनैसी पेडरेवक्सी के एक कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया।उन्हें लगा कि इस कार्यक्रम से शायद उन्हें  भी जरूरत के लायक रकम की बचत हो जायेगी। लेकिन पिआनोवादक के सेक्रेटरी ने उनसे दो हजार डॉलर की गारण्टी की माँग की। उन दिनों यह एक बहुत बड़ी धनराशि थी। फिर भी उन्होंने गारण्टी में देने के लिए 1600 डॉलर इकठ्ठे भी कर लिये थे, लेकिन चार सौ डॉलर अब भी कम थे। उन्होंने कहा कि बाकी रकम भी जमा करके शीघ्र भेज देंगे लेकिन प्रयासों के बाद भी और रुपये ना जमा होने से, उन्हें अपनी पढ़ाई भी संकट में नज़र आने लगी। संयोग से यह बात पेडरेवेक्सी तक पहुँच गयी। वे बोले-प्यारे बच्चों! मुझे पढ़ाई के प्रति जुझारू और लगनशील बच्चों से कुछ नहीं चाहिये। उन्होंने बचे हुए चार सौ डॉलर का इकरारनामा फाड़ते हुए उनके जमा किये 1600 डॉलर लौटाते हुए कहा ! इसमें से अपने खर्चे की रकम काट लो, और बची रकम से 10% अपने मेहनताने के तौर पर रख लो। शेष रकम मैं ले लूँगा।  दोनों कृतज्ञ छात्रों की आँखें भर आईं।

साल गुजरते गये, पहला विश्वयुद्ध हुआ और उसके समाप्त होते-होते पेडरेवेक्सी पोलैण्ड के प्रधानमंत्री बन गये। उनके सामने नागरिकों के लिए भोजन जुटाने की कठिन चुनौती थी। उनकी मदद सिर्फ यू एस फण्ड एण्ड रिलीफ ब्यूरो का अधिकारी हर्बर्ट हूवर कर सकता था। हूवर ने बिना देरी किये हजारों टन अनाज वहाँ भिजवा दिया। इस अनमोल सहायता के लिए पेडरेवक्सी, हर्बर्ट हूवर को धन्यवाद देने के लिए पेरिस पहुँचे। पेडरेवक्सी को सामने देखकर हूवर ने खड़े होकर कहा ! सर, धन्यवाद देने की कोई जरूरत नहीं। आपको शायद याद नहीं, जब मैं स्टूडेंट था, तब आपने भारी कष्ट के समय मेरी बहुत बड़ी मदद की थी। आज उसी मदद का थोड़ा सा मूल्य चुकाने का मुझे मौका मिला है।  पेडरेवक्सी के सामने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दो छात्रों का चेहरा घूम गया और उनकी आँखें नम हो गईं ।

 





राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ 






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