लवी अग्रवाल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आहिस्ता चल जिंदगी अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है
रफ़्तार में तेरे चलने से
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों_को_हँसाना_बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं
कुछ काम भी और जरूरी हैं
जिनको निपटाना बाक़ी है
जिंदगी की उलझनो को पूरा सुलझाना बाकी है
आहिस्ता चल जिंदगी अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
वाईस स्टेट प्रेसिडेंट राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ
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