लक्ष्मी धनगर ने घर पर ही मनायी अम्बेडकर जयंती, कहा-भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे बाबा साहेब


शि.वा.ब्यूरो, अलीगढ। अखिल भारतीय धनगर समाज महासंघ महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय अध्यक्ष  एवं पूर्व लोकसभा प्रत्याशी लक्ष्मी धनगर ने कहा कि 14 अप्रैल को डा भीमराव रामजी आम्बेडकर की 129 वीं जयंती है, सम्पूर्ण भारतवर्ष में 14 अप्रैल का दिन अम्बेडकर जयंती के रुप में मनाया जाता है। ये दिवस सभी भारतीयों के लिए शुभ दिन माना जाता हैं। डा आम्बेडकर ने सक्रिय रूप से अछूतों के साथ-साथ भारतीय समाज के अधिकारहीन वर्ग के लिए भी कार्य किया। वे एक राजनीतिज्ञ, कानूनविद, मानवविज्ञानी, शिक्षक, अर्थशास्त्री थे। इस दिन को भारतीय लोगों द्वारा अम्बेडकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए देश भर में धूममधाम और हर्षों-उल्लास के साथ मनाया जाता है। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे। उन्होंने कहा कि आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य प्रांत/मध्य प्रदेश में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वीं व अंतिम संतान थे। उनका परिवार कबीर पंथ को माननेवाला महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव का निवासी था। वे हिंदू महार अछूत समझी जाने वाली जाति से थे. भीमराव आम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे और उनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सुबेदार थे।विद्यालयी पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद छात्र भीमराव को छुआछूत के कारण अनेक प्रकार की कठनाइयों का सामना करना पड़ा । 7 नवम्बर 1900 को रामजी सकपाल ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल में अपने बेटे भीमराव का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर दर्ज कराया। उनके पिता ने आम्बेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, अतः आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज करवाया गया। बाद में एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से आंबडवेकर को हटाकर अपना सरल आंबेडकर उपनाम जोड़ दिया तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं। आम्बेडकर ने कहा था छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः शिक्षा के उपरान्त उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में लिखा है। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी शहर की चवदार तालाब से पानी लेने का अधिकार दिलाने के लिये सत्याग्रह चलाया. 1927 के सम्मेलन में उन्होंने जातिगत भेदभाव और छुआछूत को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए प्राचीन हिंदू पाठ "मनुस्मृति" जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की. उन्होंने पाकिस्तान की अवधारणा का विश्लेषण किया व मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की।     29 अगस्त 1947 को आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। आम्बेडकर को भारत के संविधान का रचियता के रूप में मान्यता प्राप्त है. डा आम्बेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया गया जिसे उनकी इच्छाओं के विपरीत संविधान में शामिल किया गया था. 


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