सुनिता ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
दहशत सी है बस्ती मे सन्नाटा सा छाया है।
मज़लिस मे फरिश्तों की ये कौन दनुज घुस आया है।
रो-रो कर परेशान है आसमां,
आँचल ज़मीं का भी नम हो आया है।
दहशत सी है बस्ती मे सन्नाटा सा छाया है।।
मासूम बचपन सिमटा घर के तंग कोने मे।
ख्वाबों मे भी दहशत डर लगता है सोने मे।
तारे है मायूस,चाँद को बादलों ने छिपाया है,
दहशत सी है बस्ती मे सन्नाटा सा छाया है।।
चुप है पपीहा, कोयल भी अब मीठा नही गाती है।
न शंख न घंटियाँ मंदिरों से पावन ध्वनि नही आती है।
जिंदगी तनहा ,मौत अकेली ,इंनसां इंनसा से घबराया है
दहशत सी है बस्ती मे सन्नाटा सा छाया है।।
गली,सड़कें,चौराहे सब वीरान, हर तरफ खामोशी का साया है।
कच्चे घड़ा सी फूट रही जिंदगी, हर तरफ मरघट पसर आया है ।
मुख्तसर सी जिंदगी, फिर क्युँ सबको मायाजाल ने फसाया है,
दहशत सी है बस्ती मे सन्नाटा सा छाया है।
मज़लिस में फरिश्तों की ये कौन दनुज घुस आया है।
गॉव काम्बलू, तहसील करसोग, जिला मंण्डी हिमाचल प्रदेश
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