सुभाष चन्द्र नेताजी,शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आजादी के 68 साल पूरे होने के बावजूद भी देश की आधी आबादी से ज्यादा संख्या वाला समाज अन्य पिछड़ा वर्ग कहलाता है। जिस देश के प्रमाणित इतिहास का प्रथम चक्रवती सम्राट जिसने विश्वविजेता सिकन्दर व सिल्युक्स को हराया सम्राट चन्द्र गुप्त मौर्य तथा विश्व के सबसे बड़े और महान सम्राट अशोक महान के वंशज अन्य पिछड़ा वर्ग कहलाते हैं, महाभारत काल के यदुवंशीय नायक श्रीकृष्ण के वंशज छत्रपति शिवाजी, शाहूजी महराज के वंशज, यादव, पाल होलकर, दक्ष प्रजापति, विश्वकर्मा, राजभर सहित अन्य सभी ओबीसी शासक जातियाँ जिनकी आजादी से पूर्व जागीर और रियासतें थी, अन्य पिछड़ा वर्ग कहलाते हैं। पिछड़े वर्गों में शुमार लगभग सभी जातियाँ इस देश की राजसत्ता पर काबिज रही हैं, तो आज इनकी स्थिति इतनी दीन हीन क्यों? क्यों 54 प्रतिशत से अधिक आबादी वाला समाज सामाजिक प्रतिष्ठा के लिये दर दर की ठोकरें खा रहा है? क्यों उसकी आबादी का आधा टुकड़ा आरक्षण के नाम पर फेंका जा रहा है? उस आधे आरक्षण में भी सैकड़ो रूकावटे हैं। सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी अल्प सवर्णों की दया पर क्यों निर्भर है? क्यों ओबीसी के लोगों के प्रोन्नति में आरक्षण नहीं? क्यों इनकी आबादी के अनुपात में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सेना, मीडिया, निजी क्षेत्र में आरक्षण नही? क्यों इतने बड़े वोट बैक वाले समाज को लोग इतना कायर क्लीव, निरीह और कमजोर मानते हैं? क्या इनके बुद्दि विवेक और आत्म सम्मान नहीं है? क्यों ये केंचुये जैसे काटे और कुचले जाते हैं? क्यों सिंह की तरह गुर्राते नही? किसी भी जीव के जान और आन-बान पर बन आती है, तो वह तनकर खड़ा हो जाती है और अपनी प्रतिरक्षा करता है, लेकिन पिछड़े वर्गों के लोग संज्ञा शून्य मुर्दा की तरह जीवन यापन कर रहे है। लोकतांत्रिक देश में जहाँ एक-एक वोट से राजसत्ता चुनी जाती है, वहाँ आधी से अधिक आबादी का समाज अपनी पहचान को मुंहताज है।
क्या हमारा आत्मसम्मान सचमुच मर गया है? क्या हमारी आत्मा सचमुच नहीँ धिक्कारती और हम अपने सामने अपनी आने वाली पीढ़ी का भविष्य लुटता देखकर भी परेशान नहीं होते? यदि अगुआ बनना है तो उपरोक्त सभी सवालों के जवाब तलाशने होंगे और अपनी कमजोरियों को तलाश कर एक बड़ा प्रयास करना होगा, तभी शासन सत्ता की चाभी आपनो ;ओबीसीद्धहाथ आयेगी। आँख कान खुले रखकर अपनी एकजुटता साबित करनी होगी। आपणे बच्चों के लिये तो जानवर भी लड़ पड़ते हैं, हम तो भला मनुष्य हैं। यदि अभी नहीं चेते तो हमारी भावी पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। उठो और संकल्प लो कि हम राजनैतिक चोंचलेबाजी को छोड़कर भावी पीढी के लिये एकजुट होंगे। निजी स्वार्थों को छोड़कर अन्य वर्गों की भाँति एक सामाजिक झंडे के नीचे एकत्र होकर अपनी आवाज बुलन्द करेगे, क्योंकि जिसकी जितनी संख्या भारी उसको उतनी दो हिस्सेदारी।
लखनऊ, उत्तर प्रदेश