ऋषिराज राही, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मन कभी यूं भी तो खामोश उड़ा करता है
जैसे खुल पंखों से उड़ता हो परिंदा कोई
अंबर को सुनाता हो मुहब्बत की गजल।
जैसे उछली हुई लहरें कोई समुंदर की
साहिलों को सुनाती हों हौसले का हुनर।
जैसे वादी में चनारों की खमोशी को
किसी चिडिया ने सुनाया हो खुशियों का तराना कोई।
जैसे बहते हुए झरने से बरस पड़ती हो
खिलखिलाहट कुदरत के शादियानों की।
शून्य में गूंजती गूंज और अनुगूंज में
जैसे तेरा ही राग बजता है।
तू है तो सही पर नजर नहीं आता?
तेरे अहसास को छूते ही पुलक उठती हैं रोम शिराएं।
क्यों कि तू ही तो है, जिसे पाने के लिए है
जिंदगी की यह उड़ान है मेरी।
पा लूंगा तुझे मैं एक दिन जरूर।
वरिष्ठ पत्रकार व कवि मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश