मनमोहन शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
लाखों मरे और मर ही रहे
टस से मस न हुआ रोग
अंहकार कुचलते
औकात दिखाते
कुदरत के कहर का
ये कैसा संयोग?
रोगी को तो कौन पूछे ?
बचाने हकीमों को लगे हैं लोग।
चाँद तारों को पीछे छोड़
आगे बढ़ने की है होड़
बातें मंगल से कम कहाँ?
बस मुठ्ठी में सारा जहाँ
मुँह में पट्टी बंधवा फिर कौन?
इंसान को हंफा रहा
देव दानव की तो छोड़ो
ईश्वर नकारने वालों तक
थर थर कौन कंपा रहा?
रक्षक की विफलता पर न कोई बवाल
गतानुगतिक से प्रमाणिकता के सवाल
अब तो समझ ऐ इंसान!
प्रकृति से विरुद्धता की परिणति
वरना वो दिन दूर नहीं
जब होगी और भी ज्यादा दुर्गति।
कुसुम्पटी शिमला-9
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