डॉ जगदीश शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हिमाचल प्रदेश जिला मण्डी के बल्ह विकास खंड की छमयार पंचायत का बांदली गांव सरोआ पहाड़ी के आंचल मे बसा और चारों तरफ से हरे भरे वृक्षों से घिरा अति रमणीय स्थल है। बांदली जाने के लिए चैलचैक-रोहांडा मार्ग पर स्थित कुकड़ीगलु से वाहन योग्य रास्ता जाता है। कुकड़ीगलु से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान में अगाध वन्य सम्पदा मौजूद है। इसी सम्पदा का आकर्षण अरसे से सैलानियों और सौंदर्य प्रेमियों को बार-बार यहां आने के लिए विवश करता है। देवदार, रखाल, बान, बुरांस, कायफल, रई, तोश, दारूहरिद्रा, पाषाण भेद, मुश्कबाला, वनफ्सा, नीलकंठी, तगर, नैर, पुनर्नवा, गुच्छियां, झरका, जंगली पालक, वनजीरा, वन आजवाइन, फाफरा, अमरबेल जैसे अनेक औषधीय द्रव्य भारी मात्रा में मौजूद है।
समाज सेवी और पर्यावरण प्रेमी बी.के ठाकुर को इन द्रव्यों की विशद जानकारी है तथा वे वैज्ञानिक शोद्ध खोज कर लोकप्रियता की ऊंचाइयों को छू रहे हैं। पर्यावरण के पुरोधा साधारण, नेक, मिलनसार और अनथक परिश्रमी बीके ठाकुर और सतीश ठाकुर की इस साधना स्थली में चील, चकोर, मोर, तीतर, बटेर, जंगली मुर्गे, खरगोश, फ्लाइंग फाक्स, भालू, बाघ जैसे विचरते हुये अनेक खूबसूरत वन्य जीव प्रकृति प्रेमियों को बहुत सुकून व रोमांचक अनुभव देते हैं। बांदली से लगभग दो किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ी टेकड़ी पर सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाली मां जालपा देवी विराजमान हैं। बांदली से लगभग साढ़े नौ किलोमीटर दूरी पर कमरुनाग जी स्थित हैं। घने जंगल से युक्त बांदली से कमरूनाग तक की ट्रैकिंग सैलानियों का मन मोह लेती है। बांदली के इस सुरम्य स्थल में पर्यटकों की सुविधा के लिए ष्सीडार वैली होम स्टेष् और ष्मोजो क्लब स्टार वैली स्टेष् में शहरों की भागदौड से दूर शांत-एकांत, निर्जन घने जंगलों में रात गुजारना प्रकृति की धड़कन को महसूस करने जैसा अनुभव है। बांदली और जालपा माता क्षेत्र की रमणीयता को को देखते हुए राज्य सरकार को चाहिए कि इसे पर्यटन विकास की दृष्टि से चयनित किया जाए।
पांगणा करसोग मण्डी, हिमाचल प्रदेश