प्रलय काल के बाद


डाॅ दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


प्रलय काल के बाद में, पाया जग वीरान।
वंश चलायो आपने, सबको दे वरदान। 1 
श्रद्धा तन को देखके, हर्षित हैमन भूप। 
राजा मनु मोहित भये, देखा सुन्दर रूप। 2 
कामायनि परसाद की, श्रद्धा मनु विश्वास। 
मानव तन को पायके, करते जग की आस। 3 
पायन की पायल बजी, वीणा सी झंकार। 
कमर हिलोराखा रही, छतियाँ भई बहार। 4 
बाण सरीखेनैनसखि.घायल करते मोय। 
अमरत वर्षा होत है, जब जब देखू तोय। 5 
अखियाँ तेरी सूर सखि, सबको देत उजास। 
तेरे मेरे नैन मिले, जीवन होत प्रकास। 6 
भोहेंतेरीधनुष सी, पलके बने किवार। 
धवल सरोवर में खिलें, दो कारेकजरार। 7 
कारे कजियारे बने, प्राणन के आधार। 
कानन लटकन शोभते, झिलमिल करताहार। 8 
प्रीत बड़ी हैनैन की, जैसे चंद चकोर। 
आँखन से नदियाँ बहे, दिलको देझकझोर। 9 
जब जब तू मुस्कात है, पूनमहोती रात। 
मुखमंडल शशि रूप है, हरता सब संताप। 10 
गजगामिन सी लागती, चलती जब तूचाल। 
जबसे तुझसे प्रीत भई,जीवन मालामाल। 11 
अट्टहास कर जब हँसें, जग में खिलते फूल। 
मेरे मनकि पीरहरे, तेरे पग की धूल। 12 
शुक समान हैनासिका, लाल गुलाबी होंठ। 
दूध फैन से दाँत है, रहते मुख के कोट। 13 
कोयल से तो बोल है, नाचे जैसे मोर। 
श्याम मेघसे केश है, लागत है चितचोर। 14 
सजनी तेरी याद में, भूख लगेना प्यास। 
मन मतंगमाने नही, छोड़नाही आस। 15 
सब जग में ढूँढत फिरूँ, पाया नाही ठाम। 
अब तू ही हमको बता, कैसे करते काम। 16 
नीलवसन तन साँवला, लगती श्रद्धा रूप। 
रतिकातू अवतार है, चितवत हैनर भूप। 17 
पैरों की उँगली सजी, पहनी बिछुड़ी चार। 
रेख मांग सिन्दूर है, शादी का सिंगार। 18 
अनामिका की मूंदरी, मगनी का उपहार। 
कपोत ग्रीवा चमकता, मंगल सोना हार। 19 
नाक नथनी रतन जड़ी, सुन्दर रूपअपार। 
पलकों में काजर सजो, माथे बिंदिया सार। 20 
नागिन चोटी लहरती, कारे कारे बाल। 
कपोल कमलों से खिलें, अधरेंलाली लाल। 21 
कर्णफलकी क्या कहूँ. मन्दोदरीलजाय। 
चूंडी की खनकारियाँ, सोता काम जगाय। 22 
नाखुन पालिश कीन है, उँगली शोभा पाय। 
वेणी गूथी फूल की, देवी सी दिखलाय। 23 
कटि मैं चाँदी करधनी, हसली गले सुहाय। 
बाजुबंदा भुजा छवी, सखियन मन ललचाय। 24 
तेरे रोवन से सखी, फूले पेड़सुखाय। 
तेरे असुवन बूंद से, देशकाल पड जाय। 25


आगर (मालवा) मध्य प्रदेश


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