रिश्तों की कीमत


मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

भौतिकता हो गई है हावी
रिश्तों की मर्यादा पर
हर रिश्ता सिकुड़ गया
और जलकर राख हुआ स्वार्थ की भट्टी में...


रिश्तों की कीमत
दौलत की तराजू पर आकी जाने लगी है
चेहरा देखकर
आदमी की औकात बताई जाने लगी है।


पद-पहुँच के हिसाब से
सम्मान के रंग में निखार आने लगा है
ऐ आदमी ! कब तक कोरा दिखावा दिखायेगा
सिर्फ दो गज कफन का टुकड़ा ही तो तेरे काम आयेगा।


मत तोल धन के तराजू पर रिश्तों को
क्या -क्या कर्त्तव्य हैं तेरे उनको पूरा कर
दिखावा, आडम्बर के जाल में मत फस
इंसान हो तो इंसानियत को मत भूलो।


जो तुझको भुलाये
तू उनको नजरअंदाज कर
कर्म कर नित और समय का इंतजार कर
भूलकर भी स्वयं को खत्म मत कर


स्वंय से लड़कर
समय को मात दे
कभी-कभी भूलकर अपनों को
तू अकेला ही जीवन जी...


ग्राम रिहावली, डाक तारौली गूजर, 

फतेहाबाद, आगरा 283111

Post a Comment

Previous Post Next Post