शि.वा.ब्यूरो, कानपुर। मानव रक्त का अवैध कारोबार करने वाले अब कुत्तों के खून का धंधा भी करने लगे हैं। वे गली के कुत्तों को पकड़ कर उनका खून निकाल लेते हैं और फिर इसे ऐसे डाॅग्स क्लीनिक को बेच देते हैं, जहां उससे ऊंची नस्ल के पालतू कुत्तों का इलाज होता है।
इंसानी खून का कारोबार कोई नयी बात नहीं रह गयी है, लेकिन अब सड़कों पर आवारा घूमने वाले कुत्तों के खून का धंधा भी फल-फूल रहा है। ये खुलासा पीपुल फाॅर एनीमल्स की सदस्य अर्चना त्रिपाठी ने किया। उन्होंने बताया कि जब ऊंची नस्ल के पालतू कुत्तों में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है, तो डाॅग्स क्लीनिक में उन्हें खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में गली के कुत्तों को पकड़ कर उनका खून निकाल लिया जाता है और इसे पालतू कुत्तों को चढ़ाया जाता है। इसकी ऐवज में एनीमल ब्लड के कारोबारी मोटी रकम वसूल रहे हैं। उन्होंने बताया कि पशु प्रेमी संस्थाओं के पास इस तरह के काले धंधे की सूचनाऐं आ रही हैं, लेकिन शातिर दिमाग लोग अपने काम को इस तरह अन्जाम दे रहे हैं, कि उन्हें अभी तक रंगे हाथों नहीं पकड़ा जा सका है, क्योंकि अक्सर ऐसे काले काम को रात के अंधेरे में अंजाम दिया जाता है। शहर में कुछ पशुओं के डाक्टर के पास पहुंचने वाले किसी कुत्ते को अगर ब्लड की जरूरत है तो इसके लिए बेहद छोटा रास्ता निकाला गया है। क्लीनिक के पास आवारा घूम रहे सेहतमन्द कुत्तों को कुछ खाने के बहाने अंदर बुलाकर बेहोश किया जाता है और उनका ब्लड निकालकर प्राइमरी टेस्ट होते हैं। ब्लड में कोई इन्फेक्शन नहीं मिलने पर इसे तुरंत जरूरतमंद कुत्ते को ट्रांसफ्यूज किया जाता है।
कानपुर चिड़ियाघर के चिकित्सक डा.यू सी श्रीवास्तव ने बताया कि कुत्तों में 7 ब्लड ग्रुप होते हैं। इसमें किसी भी कुत्ते को पहला ब्लड ट्रांसफ्यूजन बिना ग्रुप मैच के ही किया जा सकता है। हालांकि इसमें थोड़ा जोखिम होता है, लेकिन दूसरी बार खून चढ़ाने से पहले ग्रुप चेक करना जरूरी होता है।
उफ! आवारा कुत्तों के खून का काला कारोबार (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 12, अंक संख्या-30, 21 फरवरी 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)