वरदान बना कोरोना


राजेश सारस्वत, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


कोरोना के विषाक्त वातावरण में पर्यावरण की स्वच्छता और सुन्दरता को चार चाँद लगे हैं। जहाँ पूरा विश्व महामारी से भयभीत रहा वहाँ जलचर, थलचर और आकाश में विचरण करने वाले जीव जंतु भयहीन होकर खुले मन से यत्र तत्र विचरण करते रहे। इस समय उन सब जीव जंतु व जंगली जानवरों के लिए जहाँ चाह वहाँ राह वाली बात सर्वार्थ सिद्ध होती है, विपरीत इसके मनुष्य जिसने न जाने पक्षियों और जानवरों के साथ व प्रकृति पर कितने ही कहर ढाए हैं। आज स्वयं भयभीत हो मानव चारदिवारी के अंदर सिमट गया है।


किसी ने ठीक कहा है कि समय बलवान है और वह चक्रवत घूमता है, अर्थात सबका समय आता हैं। ऐसे विषाक्त वातावरण में पर्यावरण में सुधार देखने को मिला है। जिसके लिए सरकार के द्वारा और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनेक योजनाएं व अभियान चलाए गए वह महज महीने भर के लॉकडाउन से ही स्वच्छ हो गया जिस गंगा जमुना की पवित्रता के लिए सरकार ने अरबों रूपये खर्च कर दिए, बावजूद उसके भी वह निर्मल न हो सकी, लेकिन विषाक्त वातावरण ने सब साफ कर दिया। जो व्यक्ति अपनी जननी अपनी माटी को छोड़ शहर गया, वह भी कई दशकों बाद अपने गाँव अपनी माटी की खुशबू लेने वापिस आ गया। जो जमीनें सदियों से बंजर पड़ी थी, वह भूमि भी इस महामारी के दौर में उपजाऊ बन गई। जो लोग गांव की संस्कृति और सभ्यता को भूल गए थे और जिनके बच्चे गांव की सभ्यता और माटी की खुशबू से अनभिज्ञ थे, अब जानने लगे हैं। एक तरफ जहाँ यह कोरोना मानव सभ्यता के लिए अभिशाप बन रहा है, दूसरी तरफ़ यही कोरोना प्रकृति और ब्रह्माण्ड में रहने वाले सभी प्राणियों के लिए वरदान साबित हुआ है। इस महामारी के दौर में एक पीड़ा देने वाली बात यह रही कि जो मजदूर वर्ग दिनभर की कमाई से रातभर का खाना खाता था, उसका रोजगार छिन गया व उसे सड़कों पर भूखा-नंगा सोना पड़ा और लात घूंसे व डंडे खाने पड़े। 


शिमला, हिमाचल प्रदेश


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