व्यक्ति नहीं, संपूर्ण विचारधारा थे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डा•जगन्नाथ मिश्र (जन्म दिन विशेष)


आशुतोष, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा•जगन्नाथ मिश्र बिहार राज्य के लिए एक राजनीतिक अभिवाहक, एक विचारक एक चिंतक (जिन्हें सारी विषयों समस्याओ पर मजबूत पकड़ थी) व स्वंय में  एक आदर्श विचार थे। आज उनका हम सब के बीच न होना रिक्तता पैदा करता है। वह राजनीतिक गलियारे में भी वैसे ही थे, जैसे एक आम लोगो के बीच। वे शख्सियत ही ऐसे थे, जो सभी के दिलों में बसते थे। वे जीवन पर्यन्त सभी को राह दिखाते रहे। बिहार के दिग्गज नेताओं ने कई बार इसे सार्वजनिक मंचो से स्वीकार भी किया है। वे स्वभाव के धनी और मिलनसार व्यक्ति थे। वे जीवन पर्यन्त जन-कल्याण के लिए समर्पित रहे। यही कारण है कि उनके घोर विरोधी भी उनका नाम लेते थे और इज्जत करते थे। इन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी में से एक माना जाता रहा है। अपने सभी कार्य-कर्ताओं को उम्र के अंतिम पड़ाव तक बतौर नाम से जानते और पहचानते रहे, जो इनकी याददाश्त लेवल को दर्शाता है। इनके बारे में लोग यही कहते है कि जो जिनसे एक बार मिल लेते थे, उसे वे वर्षो बाद भी नाम के साथ पहचान लेते थे।जो उनकी शख्सियत को बढ़ाता चला गया।

इन्होंने कुल 5 बार लगातार ( 1972, 1977, 1980, 1985, 1990 ) मधुबनी के झंझारपुर विधानसभा से चुनाव जीता और तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। (75 -77, 80-83, 89-90, तक) उन्होंने बिहार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए, विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदानो को चाहकर भी नही भुलाया जा सकता। संस्कृत स्कूल मदरसा,स्कूलो और कालेजो का सरकारी करण उनके मुख्यमंत्रीत्व काल में बड़े पैमाने पर हुए, जो आज भी शिक्षा के मूल आधार है। शिक्षको की नियुक्ति और वेतनमान का ग्रेड भी उन्ही के द्वारा दी गयी। शिक्षकों को भी कलेक्टर के दर्जे की तनख्वाह तक पहुंचाया, जिसके कारण उस समय की शिक्षा आज की शिक्षा से बेहतर मानी जाती है।उर्दू को द्वितीय राजभाषा में शामिल करना, उर्दू शिक्षकों टायपिस्टो की नियुक्ति करना उनकी दूरगामी सोच और समरसता पूर्ण व्यवहार को दर्शाता है। वे जाति के लिए नही, वरन पूरे समाज के लिए कार्य करते थे। सम्पूर्ण बिहार को वे अपने लेखो-प्रलेखो पत्रों और विज्ञप्तियों के जरिये सदा संदेश देते रहे। उनके विचारो से राज्य के सभी दल लाभान्वित होते रहे थे। सभी के प्रति उनका स्नेह मन भावन था और सभी उनको अभिवाहक की तरह मानते थे। कभी भी इन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नही किया।

उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी किताबें भी लिखी, जो बिहार की विभिन्न समस्याएँ, अर्थशास्त्र की कई शोध पत्र और बिहार की उत्थान से जुड़ी हुई है। उन्हें लिखने और पढ़ने में बड़ी रूचि थी। जीवन के अंतिमकाल में भी वे प्रेस विज्ञप्ति देते रहे।ऐसे महान विचारक का आज न होना बिहार की राजनीति के लिए अपूरनीय क्षति मानी जा रही है।


         पटना बिहार 

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