जगदीश शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
शिकारी देवी मंडी जिला का एक प्रमुख पर्यटन स्थल ही नहीं अपितु सबसे बड़ा ऐतिहासिक धार्मिक स्थल भी हे। यहां 64 योगिनियों का वास है। इस तीर्थ स्थान की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने की थी। पांडवों के आगमन पर देवी द्वारा शिकार रुप कस्तूरी मृग के रुप दर्शन देने के साथ ही यहां का नाम शिकारी पड़ा। अतीत में यह स्थान विशालकाय घने पेडों से आवृत था।योगिनी साधना के इस स्थल तक पहुंचना जहां बहुत कठिन था, वहीं यहां रहकर साधना करना भी बहुत जटिल था। धूरजट्ट ने भार भाषणी में लिखा है कि 765 ईश्वी में सुकेत संस्थापक राजा वीरसेन ने पांगणा को स्थायी राजधानी का गौरव प्रदान करने के बाद सुकेत अधिष्ठात्री राज-राजेश्वरी महामाया पांगणा के रक्षार्थ व समाज के कल्याणार्थ शिकारी देवी मे एक ऊंचे चबूतरे पर बिना गुंबज(छत) के मंदिर की स्थापना कर 64 योगिनियों तथा इस मंदिर से कुछ दूरी पर बूढ़ी योगिनी (भद्र काली)की स्थापना की थी।शिकारी देवी की यात्रा यदि धार्मिक उद्देश्य तक ही सीमित कर दें तो शिकारी जाकर प्रकृति का क्या आनंद लिया? कुछ भी नहीं।
सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी तरुण श्रीधर का कहना है कि शिकारी देवी तो प्रदेश के सबसे रमणीय व सुन्दर स्थानों में एक है और मेरा तो मनपसन्द नम्बर एक पसंदीदा स्थान है। शिकारीदेवी की ट्रैकिंग का अपना अलग ही आनंद है।संध्या सल्फर हाट स्प्रिंग हैल्थ केयर के मुख्य प्रबंधक प्रेम रैना का कहना है कि शिकारीदेवी क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर, रमणीय, मनमोहक शिकारीदेवी का शांत वातावरण सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। वर्षों से हर वर्ष शिकारीदेवी की यात्रा करने वाले डॉक्टर रमेशचंद का कहना है कि मानव की दैहिक, मानसिक और आत्मिक बल की वृद्धि के लिए शिकारीदेवी का जलवायु अद्वितीय है। शिकारी देवी से कमरुदेव की ट्रैकिंग कर चुके साहित्यकार डॉक्टर हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि शिकारी देवी और इसके चारों ओर बिखरा सौदर्य,एक से बढ़कर एक खूबसूरत मखमली विस्तृत ढलानें, मूक पवन प्रवाह यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को मुग्ध कर स्वर्गिक आनंद देने के लिए विद्यमान है। एक अलौकिक शांति प्रदान करती शिकारी देवी प्रकृति की विचित्रताओं के लिए संसार प्रसिद्ध मनाली, रोहतांग, नालदेहरा कुफरी से कम नहीं है।
शिमला के बैंक कर्मचारी विक्रम पालसरा का कहना है कि शिकारी देवी जितनी शांति मनाली में कहाँ मिलेंगी। शिकारी देवी अभी तक बस एक ही बार जाना हुआ है, लेकिन यहाँ की शांति सौंदर्य तब से बार-बार आकर्षित करती है। कुछ अलग बात है, इस शक्ति स्थल में कुफरी और नालदेहरा की तो तुलना ही नहीं कर सकते, शिकारी देवी का सौंदर्य लाजवाब है। करसोग के प्रथम श्रेणी कान्ट्रेक्ट सुरेश शर्मा का कहना है कि शिकारीदेवी को सौंदर्य और सुख-शांति का अक्षय भंडार कहें तो अत्युक्ति न होगी। पुरातत्व चेतना और अनेक राज्य पुरस्कारों से सम्मानित. डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि प्राकृतिक दृष्टि से शिकारीदेवी में बने वन विभाग के विश्राम गृह(वन कुटीर) के आस-पास की घाटी, हैलीपैड वाली ढलानें, नरोल जान क्षेत्र ही शिकारी देवी क्षैत्र का पर्यटन की दृष्टि से मुख्य आकर्षण है, जो शिकारी देवी आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं में नई स्फूर्ति और नए उत्साह का संचार करता है।
डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि पर्यटन निगम यदि इस क्षेत्र को ही पर्यटन योजना के तहत अपनाए तो पर्यटक शिकारी माता की पूजा के बाद इस खुली वादी के दर्शन व आनंद को भुलाए भी नहीं भूल पाएगा। इस पूरे क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन निगम एक बहुआयामी योजना भी तैयार कर उसे कार्यन्वित कर शिकारी की हसीन वादी में शिकारी मंदिर की इन ढलानों में जाने के लिए प्रेरित कर सकता है, लेकिन शिकारी देवी की ढलानों से भरे इस रमणीय स्थल के व्यापक प्रचार व पर्यटकों को आकर्षित करने के व्यवहारिक प्रयास करने होंगे। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण शिकारी देवी के इस क्षेत्र में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के बेहद अवसर है। रामपुर बुशैहर के वरिष्ठ समाजसेवी एडवोकेट विनय शर्मा का कहना है कि आज शिकारीदेवी की सुरम्य घाटी और यहां का विकास देखकर उन्हें बहुत राहत मिली है। विनय का कहना है कि शिकारी देवी की इन ढलानों में हैंग ग्लाइडिंग, पैराग्लाइडिंग, स्की परियोजना तैयार कर इसे कार्यान्वित किया जा सकता है। शिकारी देवी से कमरुनाग तक की आकर्षक पर्वत श्रृंखला में ट्रैकिंग की अपार संभावनाएं हैं।
शिक्षाविद राहुल नेगी का कहना है कि सड़क सुविधा होने के बाद शिकारी देवी मनाली-कुल्लू के बराबरी पर आ जाएगा।मुख्यमंत्री की कोशिश काफी सराहनीय है। शिकारी देवी से कुछ दूरी पर स्थित बूढ़ा केदार बेहद खूबसूरत स्थान है। भगवान शिव को समर्पित बूढ़ा केदार में एक विशाल शिला में लगभग 16 फुट गहरा छेद श्रद्धालुओं और पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहां गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी के पुण्य स्नान का आकर्षण हर वर्ष दूर-दूर से श्रद्धालुओं को यहां खींच लाता है।गुडाह पंचायत के पूर्व प्रधान और समाजसेवी खजाना राम शर्मा ने हिमाचल प्रदेश के गतिशील मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का धन्यवाद करते हुए कहा कि आज लगभग 14 करोड़ की लागत से बनने वाले करसोग के सनारली गांव से शंकर देहरा, सेरी, कांढी धार, पोखरीधार, ढडवार, निहारी, रायगढ़ तक वाहन योग्य मार्ग को चौड़ा करने का कार्य अंतिम चरण मे पहुंच चुका है। आगामी महिनों में सर्दियों से पूर्व इस पर सोलिंग-टायरिंग का कार्य तीव्र गति से पूर्ण होगा। इस सड़क के बनने से जंजैहली-गुडाह-करसोग क्षेत्रवासियों के साथ शिकारी जाने वाले श्रद्धालुओं और देश-विदेश के पर्यटकों को महत्वपूर्ण राहत मिली है।खजाना राम ने बताया कि रायगढ़ से संगरैला, कांगर, छोटी गली होकर बड़ीगली शिकारीदेवी तक अलग वजट से जंजैहली से शिकारी देवी सड़क कार्य भी इसी योजना का हिस्सा है।
खजाना राम शर्मा का कहना है कि सनारली-रायगढ़-शिकारी और रायगढ़-जंजैहली मार्ग बनने के बाद इस मार्ग पर बसें चलने से लोगों को बहुत लाभ होगा। जंजैहली-शिमला जाने-आने वालों को बहुत सुविधा होगी तथा शिकारी देवी के साथ पूरे सराज-करसोग क्षेत्र में पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिलेगा।संध्या हाट स्प्रिंग स्वास्थ्य केन्द्र के मुख्य प्रबंधक प्रेम रैना, व्यपार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता, कर्मचारी संघ के मोतीराम चौहान का कहना है कि सनारली शंकर देहरा,शिकारीदेवी, जंजैहली सड़क के बन जाने से शिकारीदेवी में तो पर्यटन का सूत्रपात होगा ही,इसके साथ करसोग-सराज-तत्तापानी-मंंडी-आनी-शिमला-किन्नौर सहित प्रदेश में भी पर्यटन को अप्रत्याशित गति मिलेगी। मुख्य मंत्री जयराम ठाकुर द्वारा 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित शिकारीदेवी को बड़े वाहन योग्य सड़क मार्ग से जोड़ने के इस आदर्श कदम से संपूर्ण करसोग-सराज-नाचन-आनी-सुंदरनगर घाटी में खुशी की लहर फैली है।
पांगणा करसोग (मण्डी) हिमाचल प्रदेश
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