मनमोहन शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
देखते ही दर्द ओ गम उनका पसीज जाता हूँ।
रस्मों रिवाजों में उलझते अरमानों पर खीज जाता हूँ।
उलझनें बहुत मुहब्बत की राह में
मिटती नहीं सूरत बसी निगाह में
एक तरफ दुनिया की हर दौलत फीकी
उनकी मुस्कुराती झलक भर से रीझ जाता हूँ।
देखते ही दर्द ओ गम उनका पसीज जाता हूँ।
दीवारें ऊँची नफरत की जाने कहाँ छोर?
एक तड़प इस तरफ दूसरी उस ओर
नम आँखों से दाँतों तले होंठ भींच जाता हूँ।
देखते ही दर्द ओ गम उनका पसीज जाता हूँ।
बरसात है वक्त-ए-मुलाकात भी
गम व जुदाई की खत्म हुई न लंबी रात ही
उनके मिलन के सपने मन में बीज जाता हूँ।
देखते ही दर्द ओ गम उनका पसीज जाता हूँ।
कुसुम्पटी शिमला-9
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