शि.वा.ब्यूरो, नई दिल्ली। नयी शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए गठित की गयी समिति के अध्यक्ष व पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम का कहना है कि फरवरी के मध्य तक समिति अपना काम पूरा कर लेगी। साथ ही वे इसे लागू करने की कार्य योजना भी पेश करेंगे। उन्होंने शिक्षा को रोजगारपरक बनाने और कौशल विकास से जोड़ने पर खास तौर पर जोर दिया।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1986 में देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी थी और 1992 में इसकी समीक्षा की गई थी। हर क्षेत्र में तेजी से आ रहे बदलावों को देखते हुए संप्रग सरकार ने नई शिक्षा नीति तैयार करने का ऐलान किया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का दावा है, कि इसमें ढाई लाख ग्राम पंचायत से लेकर वरिष्ठ विशेषज्ञों तक की राय ली गई है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति गठित की गई। इसे भविष्य की कार्ययोजना भी देनी है।
सुब्रह्मण्यम ने कहा कि हमें दिसंबर तक काम पूरा करना था, मगर शिक्षा नीति तैयार करने में बहुत जल्दबाजी नहीं दिखाई जा सकती। समिति फरवरी के मध्य तक इसे पूरा कर लेगी। बहुत से विशेषज्ञों से संपर्क किया जा रहा है। राज्यों के साथ मशविरा किया जा रहा है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि निचले स्तर तक लोगों की राय लेने की एक पूरी प्रक्रिया तो राज्यों ने पूरी की ही है। इसके अलावा मंत्रालय के स्तर पर भी राज्यों से राय ली गई थी, लेकिन अब हम अपने स्तर पर राज्यों के साथ बैठक कर रहे हैं। हमने पश्चिम जोन के राज्यों के साथ बैठक की है। 11 जनवरी को उत्तरी जोन के राज्यों के शिक्षा सचिवों के साथ बैठक है। उसके बाद और बैठकें होंगी। मंत्रालय ने उनसे सुझाव लिए थे, अब उनसे चर्चा हो रही है।
उन्हांेने बताया कि शिक्षा का रिश्ता तो सभी क्षेत्रों से जुड़ा है। हम उद्योग से बात कर रहे हैं, ताकि शिक्षा रोजगार उन्मुख बन सके। यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि इसे कौशल विकास से कैसे जोड़ा जाए। हम श्रम विभाग से बात कर रहे हैं, ताकि उन्हें अपरेंटिसशिप में आने वाली समस्याओं के बारे में जान सकें। हम मेडिकल, इंजीनियरिंग से ले कर छोटे बच्चों की शिक्षा तक के बारे में मशविरा कर रहे हैं। देश की जितनी आबादी है, उसमें सभी को औपचारिक उच्च शिक्षा नहीं मिल सकती।
श्रीसुब्रह्मण्यम ने कहा कि हमने खास तौर पर पाया है कि तीन से छह साल तक के बच्चों का दिमाग बहुत तेजी से विकसित होता है। इस दौरान उनकी सीखने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है। खास तौर पर भाषाएं वह बहुत आसानी से सीखते हैं। इस दौरान हम उन्हें सिर्फ दो गुना दो पढ़ाने में नहीं अटके रह सकते।
इस लिहाज से सीखने को हमारे पास अंतरराष्ट्रीय अनुभव है। आप उन्हें चित्रों से, डांस और ड्रामा से बहुत कुछ सिखा सकते हैं। उन्हें खेल से सिखाना होगा। यह वह उम्र होती है जब बच्चा अपने आप को पहली बार समझता है। दुनिया को समझने लगता है। इस दौरान अगर बेहतर काम किया गया तो उसका असर उसके पूरे जीवन पर होगा।
उनका मानना है कि शिक्षा तो शिक्षा है। हमारा मंत्रालय से या संस्थानों से कोई लेना-देना नहीं है। हमें तो सिर्फ यह देखना है कि देश की शिक्षा व्यवस्था कैसे ठीक हो।
उन्होंने आश्वस्त किया कि भारतीय परिस्थितियों के मुताबिक और यहां की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए आपको फरवरी के मध्य तक एक ऐसा मसौदा देखने को मिलेगा जो देश की शिक्षा की समग्रता से बात कर रहा होगा। इसमें समाज के सभी वर्ग और हिस्से की शिक्षा में भागीदारी का ध्यान रखा गया होगा।
भगवाकरण को ले कर विपक्ष की आशंका पर किये गये सवाल के प्रत्युत्तर में उन्हांेने कहा कि भगवाकरण क्या होता है? मुझे नहीं पता। शिक्षा नीति कैसी हो, हमें सिर्फ यही देखना है।
फरवरी तक पूरा हो जायेगा नई शिक्षा नीति का मसौदा (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 12, अंक संख्या-23, 04 जनवरी 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)