शालू मिश्रा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जीवन में रक्तदान क्रिया करता हैं कोई महान,
मसीहा बन निस्वार्थ भाव से बचाता विधाता रूपी जीवनदान।
बेबसी के लम्हो में हुए थे जो वीरान,
लहूँ रगो में पाकर चेहरे पर लौटी मुस्कान।
जाँत -पात का भेद भूला बैठे हैं नादान,
देखो युवाओं की फौज आई करने रक्तदान।
लहू के बदले मिली दुआ होती है वरदान,
आत्मिक संतुष्टि ये शब्दों में न होती बयान ।
रक्त की ये सौगात है देखो संजीवन बूटी समान,
स्वेच्छा से पीयूषरूपी करो लहू का दान ।
मुक्त मन से छः माह में करो हमेशा ये पुण्यदान।
रक्त देकर जरूरतमंद की समस्या का करो समाधान।
राष्ट्रदूत बन दृढ़संकल्प से करो ये योगदान,
मानवधर्म की महामुहिम से लौटाओ किसी की संतान।
अ नौजवानों करो ये अनूठा आह्वान,
रक्तदान से बढ़कर नहीं जग में कोई क्षमादान।
लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि.सराणा (जालोर)