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डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

खुली आँखों से देखता हूँ बस सपने तेरे,
तेरी चाहत जन-जन में फैलाना चाहता हूँ।
संयुक्त राष्ट्र भाषा बनाने का मकसद समझ,
विश्व पटल पर परचम फहराना चाहता हूँ।
जानता हूँ तेरी चाहत उड़ने की खुले गगन में,
तेरे सपनों को बाज़ से सशक्त पंख देना चाहता हूँ।
मेरी चाहत, मेरा सपना,  मेरा प्यार यही तो है,
वेद ऋचाओं का सार दुनिया को बताना चाहता हूँ।
सभ्यता, संस्कृति, मानवता सब भारत की देन है,
भारत को फिर से विश्व गुरु बनाना चाहता हूँ।
संस्कृत  को देव वाणी शास्त्रों में बताया गया,
हिंदी की सरलता को विश्व भाषा बनाना चाहता हूँ। 
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश 

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