शैफाली, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
क्यूँ भूल गये खुद को हम गैरों की परवाह करते करते।
चलो आज फिर से थोड़ी सी ही सही, हम अपनी सुध लेते है।।
क्यूँ चंद सपनों के टूट जाने से बेतहाशा निराश हो गये हम।
चलो आज फिर से कुछ नये सपनों को हम अपनी पलकों में सजा देते है।।
क्यूँ हर पल घेर रखा है खुदको हमने दर्द और अकेलेपन के सायों मे।
चलो आज फिर से यूं ही बेफ्रिक होकर, दिल से मुस्कुरातें है।।
क्यूँ हर वक्त बंधे रहें दूसरों की सोच की जंजीरों से हम।
चलो आज फिर से हम अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर चलाते है।।
जयपुर, राजस्थान