दुनिया में बहुत से लोग हैं, जो जन्मभूमि का कर्ज चुकाने के लिए न जाने क्या-क्या बलिदान करते हैं, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि मां यानी मातृभूमि का कर्ज कभी कोई किसी भी तरह से पूरी तरह नहीं सकता है। इसी सोच के कद्रदान हैं, अपनी जन्मभूमि, वहां के रहने वालों की बेहतरी के लिए कम खर्च में बेहतर शिक्षा की व्यवस्था करके क्षेत्र के विकास में भागीदार बनने वाले होली चाइल्ड पब्लिक इंटर काॅलेज के प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया।
प्रवेन्द्र दहिया ने शिक्षा वाहिनी को एक संक्षिप्त वार्ता के दौरान बताया कि जब उन्होंने एमएससी कृषि रसायन की पढ़ाई पूरी की तो उनके पास कैरियर बनाने के कई विकल्प थे। उन्हें नौकरी के कई ऑफर भी मिले, लेकिन उन्होंने शहर से दूर अपनी जन्मभूमि गांव जडौदा को अपनी कर्मस्थली बनाया और शहर की अपेक्षा बेहद कम फीस पर गांव में शहर जैसी सुविधा व शिक्षा प्रदान करने का बीड़ा उठाया। तत्समय कुछ लोगों ने इसे प्रवेन्द्र दहिया का पागलपन भी कहा, लेकिन उन्होंने अर्जुन की तरह मछली की आंख की तर्ज पर अपने लक्ष्य पर ही पूरा फोकस रखा और वर्ष 2004 में अपने ही गांव में स्कूल की स्थापना करके आज वे अपने गांव में कर्म फीस की ऐवज में शहर के स्कूलों की तरह ही बेहतर शिक्षा सुविधाएं प्रदान करके अपनी जन्मभूमि की प्रति अपना हक अदा कर रहे हैं। प्रवेन्द्र दहिया ने बताया कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में यूं तो पिता सहित सभी परिवारजनों का भरपूर सहयोग मिला, लेकिन चाचा के सहयोग और प्रोत्साहन को किसी भी तरह भुलाया नहीं जा सकता है।
प्रवेन्द्र दहिया ने शिक्षा वाहिनी को बताया कि जब वे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब वे देखते थे कि गांव में बच्चे टाट पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते थे, इतना ही नहीं शिक्षा का स्तर भी बेहद निम्न था। ये सब देखकर उनके मन में हमेशा ये विचार आता था कि गांव में भी शहर की तरह शिक्षा की व्यवस्था कैसे हो सकती है। वे हमेशा गांव में शहर के समान शिक्षा का सपना देखा करते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करके 14 जून 2004 को यज्ञ-हवन के साथ गांव में ही स्कूल खोलने का जोखिम मोल लिया था और आज उसी जोखिम के बल पर वे क्षेत्र में अच्छी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
अपनी जन्म भूमि को कर्म भूमि बनाकर क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने वाले प्रवेन्द्र दहिया ने एक सवाल के जवाब में शिक्षा वाहिनी को बताया कि उनके बाप-दादा कृषक थे और उनके परिवार का पूरा माहौल गांव की पृष्ठभूमि के कारण खेतीहर ही था। लोगों का मानना है कि ऐसे में शहर से दूर गांव में शहर की तर्ज पर स्कूल खोलना वास्तव में एक पागलपनयुक्त एक जोखिम ही था। आज प्रवेन्द्र दहिया नवचारों को अपनाकर गांव में ऐसी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जिसकी शहर के स्कूलों में अपेक्षा की जा सकती है। उन्होंने अपने काॅलेज में मास्टर आर्ट, कम्प्यूटर, म्यूजिक, अबेकस, वैदिक मैथ, डांसिंग और स्मार्टक्लास सहित सभी अपेक्षित सुविधाओं की व्यवस्था नियमित कर रखी है।इसी के बल पर आज उनकी शिक्षण संस्था में लगभग एक हजार से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति के बारे में उन्होंने कहा कि इसके इम्पलीमैंट होने से शिक्षा के क्षेत्र में काफी बदलाव आने की सम्भावना है।
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश।