मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
रुई से नरम बादल कितने अच्छे हैं ।
धुआं से सफेद बादल बने लच्छे हैं ।।
उमड़ - घुमड़ नभ में उड़ते जाते हैं ।
कभी गरजते रहते, कभी बरस जाते हैं ।।
काली -काली घटा अंधेरी बनाकर डराते हैं ।
बादल प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं ।।
कभी रात को तो कभी दिन को बरसते हैं ।
बादल सुबह-शाम जमकर बरसते हैं ।।
बादल अपनी मनमर्जी के मालिक होते हैं ।
कहीं सूखा तो कहीं मूसलाधार बनके बरसते हैं ।।
रुई से नरम बादल कितने अच्छे हैं ।
धुआं से सफेद बादल बने लच्छे हैं ।।
ग्राम रिहावली, डाक घर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश