चमचे बने कङछे ( व्यंग्य)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 
मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भर्ता
मैं सुक्ष्म एक प्राणी
तु  कर्ता तु ही धर्ता
अपने गुर समझाओ
काबिल मुझे बनाओ
मै अंधियारे में स्वामी
अपनी तरह बनाओ
लो बच्चे यह झोली
जाओ भरकर लाओ
घर घर आवाज लगाओ
पर खाली कभी ना आओ
खुशी हुआ रघुवीरा
चंदे की रसीद थमाई 
संध्या होते लौटे
होती खुब कमाई
कलुवा बना शीद्धहस्त
रहने लगा मद मस्त
आये दिन रंग बदले
आका हो गया पस्त
चर्चा फैली चहुंओर
जंगल में नाचा मोर
चोर चोर का शोर
अब ढुंढते छोर
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

Post a Comment

Previous Post Next Post