सावन में

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

काली -काली घटा छा रही अंबर में 
घनी अंधेरी रात बिजली कौंध रही सावन में
करवट बदल-बदल तिरिया जल रही यौवन में
मोर, पपीहा चहक- चहक कहीं बहक न जायें सावन में 

बागों में झूला पड़ गये, यौवन गाए मस्ती में
चहुंओर हरियाली हंसती- खिलखिलाती सावन में
जब अंग-अंग भीगा सिहर गई वो सावन में 
लबालब होकर ताल- तलैया झूम उठे सावन में 

मेघों की बूंदें चांदी सी बरस रहीं दिशा -दिशा में
नैन मिले सुनैना से तो हृदह घायल हुआ सावन में
मस्ती भर-भर मस्ती में  मेंढक टर्राये सावन में 
प्रियवर की याद उर झुलसाये बरसते सावन में 

भंवरा पगलाया रंग -बिरंगी कलियों महक में
कर-कर आलिंगन तान छेड़ता प्रेमालाप दिखाता सावन में
कुदरत बनी अति मनोहारी सुंदर सावन में
सतरंगी परिधान ओढ़कर गोरी शर्माती सावन में

वो पंख खोल आजादी से उड़ना चाहती सावन में 
पिया से प्रेमभरी दो बातें करना चाहती सावन में
ग्राम रिहावली, डाक घर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद (आगरा) उत्तर प्रदेश

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