बिहार में शुरू किए गए जातीय जनगणना पर रोक लगवा कर भाजपा का असली चेहरा सामने आया

कूर्मि कौशल किशोर आर्य, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
केन्द्र सरकार जन विरोधी और देश विरोधी काम लगातार कर रही है। सरकार 65 प्रतिशत ओबीसी समाज समेत सभी 90 प्रतिशत बहुजन समाज तथा देश की दुश्मन साबित हो रही है। इसके खिलाफ सभी पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक समाज से आने वाले सभी बंधुओं को आपस में सामंजस्य बनाकर संघर्ष करना चाहिए और अपने अपने हिस्से की जबाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।

प्रेम, अहिंसा, भाईचारा और शांति का संदेश पूरी दुनिया को देने वाले गौतम बुद्ध से लेकर स्वराज के रणनीतिकार राजमाता जीजाबाई, स्वराज के जनक व न्याय के प्रतिक छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, डा आंबेडकर को आर्थिक सहायता करके उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत भेजने वाले बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़, आरक्षण के जनक और डा आंबेडकर को आर्थिक मदद समेत सभी क्रांतिकारी कदम उठाए जाने पर सभी तरह से सहयोग व समर्थन करने वाले छत्रपति शाहूजी महाराज, राष्ट्र निर्माता लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल, बिहार-झारखंड के महान क्रांतिकारी शहीद रघुनाथ महतो, शहीद राम गोविन्द सिंह, शहीद राजेन्द्र सिंह, शहीद रामफल मंडल, वीरचंद पटेल, फणीश्वर नाथ रेणु जैसे कुर्मी कुल से संबंधित लाखों कुर्मी कुल दीपकों ने भारत के नवनिर्माण और भारतीय नागरिकों के विकास और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिस पर हम सभी को गर्व है। 

कुर्मी जाति गौरवशाली स्वाभिमानी परोपकारी, दयालु और न्यायप्रिय जाति है, जो सदियों से वर्तमान तक सभी धर्म, वर्ष,जाति को साथ लेकर चलती रही है। हमारे पुरखों और महान विभूतियों ने पिछड़े, दलित व कमजोर वर्गों के लिए अभूतपूर्व क्रांतिकारी कदम उठाए हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण 1902 ई में कोल्हापुर के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करना है। इसको अंग्रेजी हुकूमत को स्वीकार करना पड़ा, तब से वही 50 प्रतिशत का फार्मूला आरक्षण के लिए चला आ रहा है। 

केन्द्र सरकार ने उसमें भी 10 प्रतिशत इकोनोमिक विकर सेक्शन (ईडब्ल्यूएस) बनाकर 10 प्रतिशत आबादी वाली सवर्ण जाति को 100 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया है। इससे बहुत बड़ी असमानता और खाई को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसके बहुत गम्भीर परिणाम होंगे। इससे बहुजन समाज का भारी नुकसान पहुंचना शुरू हो चुका है। देश के सभी प्रमुख पदों और संसाधनों पर मुट्ठी भर आबादी वाली जाति का कब्जा रहा है। इसके लिए पिछड़े वर्ग की सबसे ज्यादा बुद्धिमान और जागरूक कुर्मी जाति के विभिन्न शाखाओं और उपजातियों में बंटे हुए कुर्मी बंधुओं को आपस में सामंजस्य रणनीति बनाकर 90 प्रतिशत आबादी वाली जाति के मित्रों के साथ संगठित होकर मिलकर काम करना चाहिए।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराने के लिए बहुत सराहनीय पहल और कोशिश की। इसके लिए बिहार से 11 राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की,  लेकिन केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना कराने से इंकार कर दिया। जाति आधारित जनगणना कराने के फैसले को बिहार में धरातल पर उतारा गया तो जातीय जनगणना रोकने के लिए नालंदा के भूमिहार ब्राह्मण भाजपा नेता ने सुप्रीम कोर्ट और पटना हाईकोर्ट याचिका दायर कर दी। याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने बिहार में शुरू की गयी जाति गणना के खिलाफ स्थगनादेश पारित कर दिया। सवाल यह उठता है कि केन्द्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराने के लिए तैयार क्यों नहीं है? 

उन्हें 65 प्रतिशत ओबीसी समेत 90 प्रतिशत बहुजन समाज का वोट तो चाहिए, उनके लिए जातीय जनगणना कराना मंजूर नहीं है। कौन सी जाति की कितनी आबादी है, उनकी शैक्षणिक, समाजिक और आर्थिक राजनीतिक जीवन शैली क्या है इसके लिए सर्वे कराया जाना पसंद नहीं है। ऐसे में पता चलता है कि आखिर 90 प्रतिशत बहुजन मूलनिवासी समाज के असली दुश्मन कौन है? सवर्ण जाति को बिना किसी आयोग गठन और बिना किसी आयोग के सिफारिश के 10 प्रतिशत आरक्षण 48 घंटे में केंद्र सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले लागू कर दिया था, लेकिन राजस्थान के गुर्जर समाज, पंजाब के जाट समाज, महाराष्ट्र के मराठा, गुजरात के पाटीदार समाज समेत अन्य विभिन्न राज्यों के 65 प्रतिशत ओबीसी समाज आबादी के अनुसार वर्षों से आरक्षण की मांग और आंदोलन पर केन्द्र सरकार का कोई ध्यान नहीं है। यह पक्षपात और अन्याय नहीं है तो क्या है।

राष्ट्रीय संचालक कुर्मी जागरण एकीकरण अभियान

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