प्रीति शर्मा "असीम", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जिंदगी को काटते -छांटने ही रह गए।
कभी जीत गए.....जिंदगी से ।
कभी हार कर रह गए।
कौन ........हैं ?
क्या....और क्यों...... हैं ??
इसी सोच में
जवाबों को ढूंढते ही रह गए ।
जब जाना खुद को कि ....क्या है?
मौत के तब करीब आ गए।
जिंदगी को काटते- छांटते ही रह गए।
एक सोच थी कि जिंदगी को मिलेगा .....किनारा।
किनारे की तमन्ना में बहते ही चले गए।
हिम्मत से कभी जुड़ गए ।
कभी बिखर के रह गए।
जिंदगी को काटते -छांटते ही रह गए।
वायदा था साथ चलने का जिंदगी की राह में ,
छोड़ कर साथ अलग-अलग निकल गए।
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश