प्रेम की गंगा बहाते चलो

मदन सुमित्रा सिंघल,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जोत से जोत जगाते चलो, 
प्रेम की गंगा बहाते चलो
पतझड़ की तरह है जिंदगी
हवा के झोंके बहाते चलो
कितना जीया तू अहंम नही
सबकुछ जन में लुटाते चलो
जीवन है अनमोल तुम्हारा
भजन प्रभू के गाते चलो
मत बनो विस्तारवादी
रोज कमाओ खाते चलो
आया यम लेने तुमको
बिन हुजुत तुम जाते चलो
सुख हो चाहे दुख की घङियां
प्यार के मोती बिखराते चलो
यह जीवन ना मिले दोबारा
प्रेम के गीत सुनाते चलो
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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