शिवपुराण से....... (401) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्ष पर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना 

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! वह आकाशवाणी सुनकर सब देवता आदि भयभीत तथा विस्मित हो गये। उनके मुख से कोई बात नहीं निकली। वे इस प्रकार खड़े या बैठे रह गये, मानो उन पर विशेष मोह छा गया हो। भृगु क मंत्रबल से भाग जाने के कारण जो वीर शिवगण नष्ट होने से बच गये थे, वे भगवान् शिव की शरण में गये। उन सबने अमित तेजस्वी भगवान् रूद्र को भलीभांति सादर प्रणाम करके वहां यज्ञ में जो कुछ हुआ था, वह सारी घटना उनसे कह सुनायी।

गण बोले-महेश्वर! दक्ष बड़ा दुरात्मा और घमंडी है। उसने वहां जाने पर सती देवी का अपमान किया और देवताओं ने भी उनका आदर नहीं किया। अत्यन्त गर्व से भरे हुए उस दुष्ट दक्ष ने आपके लिए यज्ञ में भाग नहीं दिया। दूसरे देवताओं के लिए दिया और आपके विषय में उच्च स्वर से दुर्वचन कहे। प्रभो! यज्ञ में आपका भाग न देखकर सती देवी कुपित हो उठी और पिता की बारंबार निन्दा करके उन्होंने तत्काल अपने शरीर को योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। यह देख दस हजार से अधिक पार्षद लज्जावश शस्त्रों द्वारा अपने ही अंगों को काट-काट कर वहां मर गये। शेष हम लोग दक्ष पर कुपित हो उठे और सबको भय पहुंचाते हुए वेगपूर्वक उस यज्ञ का विध्वंश करने को उद्यत हो गये                                                                                   (शेष आगामी अंक में)

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