गिलहरी दान का महत्व अधिक, यदि जरूरत मंद तक पहुंचे

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

विज्ञापन की दुनिया में सुनहरे सपनों को संजोने एवं आम के आम गुठलियों के दाम वसुलने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है। सस्ती लोकप्रियता पाने एवं अखबार में फोटो छपवाने के फिराक में लोग छोटे छोटे दान करते हैं। एकबारगी गुस्सा तब शांत हो जाता है कि बेचारा कुछ तो किया। दस वंचित लोगों को तो कुछ मिलेगा। मन मारकर फोटो एवं खबर छपवा देता हूँ कि असली बार कुछ बङा करोगे तो फोटो छपेगी। शोक का मारा फिर सीर खुजलाता शर्माकर फिर आ जाता है पीछली बार छह सौ के दिए लेकिन इस बार सोलह सौ के पैकेट लाया हूँ। लेने वाले राजी है मुख्य अतिथि भी बना लिया। भाषण भी लिखवा लिया अब क्या होगा। उसकी भी तरक्की समाज के प्रति मेरा भी दायित्व सोचकर फिर सौ लोगों के लिए मिष्ठान अथवा गिलहरी दान हो गया। अनेक छोटी छोटी संस्था में युवक युवती अध्यक्ष सचिव बनकर शुर्खियों में आना चाहते हैं ऐसे लोगों को सही मार्गदर्शन देकर कुछ ना कुछ तो कराया जा सकता है। 

बङा आप कर नहीं सकते छोटा आप करना नहीं चाहते तो उत्साह कैसे बढेगा। एक बार फोटो का भाषण का तथा कुर्सी का चस्का लग गया तो,, लागी नाही छुटे राम,, तर्ज पर चल निकलता है, लेकिन ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है कि जो दुल्हे के पास मुख्य यजमान के पास बङे लोगों के पास खङे होकर कब फोटो खिंचवा लेते हैं ऐसे लोग दया के पात्र होतें है सच पुछें तो स्वाभाविक ही है कि किसी को भी दया आ जायेगी। गुप्त दान ही कष्ट काटने वाला तथा असली आशीर्वाद पाने वाला दान होता है लेकिन लोग एक रुपये की आवाज मंदिर में सुनाने से पहले बङा घंटा बजाकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने में माहिर होते हैं। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम

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