मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जब देश आजाद हुआ तो मद्रास के चक्रवर्ती गोपालाचारी ने बहुत सोच विचार के बाद हिंदी को राष्टृभाषा बनाने के लिए पैरवी की वही नेताजी शुभाषचंद्र बोस ने भारत विदेश भ्रमण के दौरान महसूस किया कि इतने बड़े देश में ना तो हर भारतीय के साथ अंग्रेजी में बातचीत कर सकते ना ही अलग अलग प्रांतों ( उस समय रजवाड़ों एवं रियासतों) के लोगों से उनकी भाषा सीखकर बात कर सकें तो शुभाषचंद्र बोस ने हिंदी को ही आधार बनाकर आजादी की लङाई लङने के लिए राष्ट्र भाषा हिंदी को ही इतने बड़े देश की आपसी तालमेल की भाषा बनाने के लिए प्रयास किया।
भारत देश 15 अगस्त को आजाद अवश्य हुआ लेकिन अंग्रेजीयत भारत के हर कोने एवं हर जन के मन में इस तरह हावी थी कि ना तो किसी ने ध्यान दिया ना ही इसकी सफाई करने की कोशिश की। अंग्रजों ने हमारी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट भ्रष्ट किया। गुरुकुलों की जगह कांवेट स्कूल खोलकर जोर जबरदस्त करके अंग्रेजी को थोप दिया। तत्कालीन ग्रहमंत्री सरदार बल्भ भाई पटेल ने सभी रियासतों एवं रजवाड़ों को भारत में मिलाया लेकिन जम्मू कश्मीर को मिलाने में देर होने से आज भी हम अपने तीसरे टूकड़े को लाने एवं बचाने में तबाह हो गये।
इष्ट इंडिया कंपनी ने भारत के हर अहमं स्थानों एवं प्रतिष्ठानों के नाम के साथ इंडिया जोड़ दिया जैसे प्रसिडेंट आफ इंडिया इंडिया गेट आदि। हम भी आजादी के 75 साल बाद उसी लकीर पर चलते रहे। राष्टृभाषा हिंदी अब तक दयनीय स्थिति में इसलिए है कि किसी भी केंद्रीय सरकार ने दृड संकल्प के साथ कोशिश तक नहीं की। खैर देर से आये दुरूस्त आये। अब यदि इंडिया की जगह भारत नाम को पुनर्स्थापित किया जायेगा तो एक दिन हिंदी को भी राष्टृभाषा का दर्जा मिल जायेगा। विपक्ष विधवा विलाप करते आये है, वो कभी खत्म नही होगा। कठोर निर्णय लेकर शुरुआत कर लेने से हलचल एवं अफरातफरी के साथ बदलाव आ ही जायेगा।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम
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