मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भारत महादेश में पांच हजार साल पहले प्रताप गढ के राजा बल्लभ माँ भगवती के यहाँ अग्रसेन का जन्म हुआ। अग्रसेन महाराज ने सौ साल से अधिक राज किया लेकिन अपने समाजवाद एवं सिद्धातों से कभी समझोता नहीं किया। उनके राज्य में एक अजीबोगरीब किंतु करिश्माई चलन था जिसमें बाहर से आये व्यापारी को मान सम्मान के साथ बतौर मेहमान रखा जाता था। उसकी इच्छा के अनुसार वहाँ मकान बनाने के साथ साथ व्यापार करने के लिए उस समय की प्रचलित सौ मुद्रा तथा सौ इंट राजकोष से दी जाती थी लेकिन वहाँ की प्रजा भी बतौर उपहार एक एक मुद्रा एवं एक इंट प्रदान करती थी। इससे यथाशीघ्र आगंतुक मेहमान पहले से बसे लोगों के समकक्ष व्यापारी बन जाता था।
क्या ऐसा आज नहीं हो सकता? कोविद काल में काफी व्यापारी सङक पर आ गए उन्हें फिर बसाया एवं प्रतिष्ठित व्यापारी बनाया जा सकता है लेकिन पहल कौन करे? अपने नाम काम एवं शान के लिए आज भी अग्रवाल करोड़ों रुपये खर्च करते हैं तो क्या अपने समाज के कमजोर बंधुओं को मजबूती नहीं दी जा सकती। अग्रवालों में गुप्त दान की सर्वाधिक प्रवृत्ति देखी जाती है इसलिए अपने समिपवृति क्षेत्रों के लिए यह सामाजिक एवं मानवीय कार्य किया जा सकता है। ऐसे लोग पुनः पटरी पर आ गए तो आपका धन समूल निश्चित रूप से लौटा सकते हैं। दानधर्म सार्वजनिक निर्माण धार्मिक एवं सामाजिक कार्य में हर अग्रवाल आज तक अग्रणी भूमिका में रहा है तो इस काम में क्यों नहीं।
अग्रसेन जयंती मनाने के लिए सादगी के साथ साथ सांस्कृतिक बौधिक कार्यक्रम के अलावा होनहार खिलाड़ी छात्र चिकित्सक पत्रकार कलाकार अधिवक्ता साहित्यकार बुजुर्गों को सम्मानित करने के साथ संकल्प लेना होगा कि हम आर्थिक तौर पर जन कल्याण करने के साथ साथ शारीरिक रूप से भी श्रमदान करेंगे। अग्रसेन जयंती मनाने अग्रवाल समाज का नाम रोशन करने के साथ अग्रवालों के तीर्थ धाम अग्रोहा धाम में दर्शन करने के लिए भी कार्यक्रम मनाए। जहाँ संख्या में कम अग्रवाल है वो नजदीकी कार्यक्रम में आयें नहीं तो कम से कम 18 दीपक जलाकर जय महाराजा अग्रसेन जय अग्रोहा धाम जय अग्रवाल समाज का जयघोष करें।
प्रचारक अग्रोहा अग्रवाल अग्रसेन शिलचर, असम