अंतिम फैसला

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
रामरति हालांकि स्नातक थी लेकिन घर की हालत ठीक ना होने के कारण एवं कन्याओं की कमी के कारण आत्मा राम अपने इकलोते श्रवण कुमार बेटे के लिए रामरति को बहू बनाकर ले तो आया लेकिन उसके मन में दहेज ना मिलने के कारण उसे नौकरानी बनाकर रख लिया ताकि घर की इज्जत बाहर ना जाए तथा एक पढी लिखी कामवाली मिल गई। सास गायत्री ने समझाया कि अच्छे खानदान की बेटी तथा पढी लिखी बहू मिली है तो हमें इसके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। अपनी कोई बेटी भी नहीं है। लेकिन आत्माराम का निर्णय सबको मानना ही पङता था। रामरति हर वस्तु के लिए तरसती रहती। भाग्य को कोसती रही, लेकिन चूं तक नहीं की। देखते-देखते तीसरी बेटी को जन्म दिया तो आत्माराम को गहरा झटका लगा ओर अब वो उनके साथ भी ऐसा व्यवहार करने लगा । अब घर में चार रामरति हो गई तो एक दिन निर्णय लिया कि क्योंकि हम हर तरह से शिक्षित है तो अभिलाषा संस्था से मिलकर चारों ने भराभराया घर छोड़ कर न्यायालय में एक शपथ पत्र तैयार करवाया कि हम आत्माराम की संपत्ति खानदान एवं परिवार से अपना हक छोङकर अपने आप को चारों स्वतंत्र घोषित करती है जब हम एक संपन्न परिवार में रहकर हर अधिकार एवं प्यार से वंचित रहे तो क्यों ना हम ऐसी महिलाओं को न्याय दिलाने के काम करें जो नर्क की जिंदगी जी रही है। 
    आत्माराम हाथ मलते रह गये लेकिन चारों रामरति मिलकर समाज को एक नई दिशा प्रदान की। वशुमति रो रो कर माँ रामरति की कहानी सुनाई आज उसकी श्रद्धांजलि सभा थी जिसमें सैंकड़ों महिलाओं ने रामरति के अंतिम फैसले पर खुशी के आंशु बहा रही थी। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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