वीरांगना मां रामकली को याद किया

शि.वा.ब्यूरो, सहारनपुर। सुदूर ग्रामीण अंचल की एक अनपढ़ महिला जिसे एक राष्ट्रीय शिक्षक वैदिक चिंतक आर्यवीर पंडित विश्वंभर सिंह ने जीवन संगिनी बना कर अपने हस्ताक्षर करना सिखाया, यज्ञ और ईश्वर स्तुति उपासना मंत्र सिखाए। उस अनपढ़ महिला रामकली देवी ने महात्मा गांधी और नेता जी सुभाष चंद्र बोस के दर्शन किए और अपने पति के साथ स्वाधीनता संग्राम की सहगामिनी बन गई। बस फिर क्या था, उन्होंने अपने बच्चों में पढ़ लिख कर काबिल बनने और जीवन में देश प्रेम व ईश्वर भक्ति के संस्कार कूट कूट कर भरे। पुरुष प्रधान समाज होते हुए भी पंडित  विश्वंभर सिंह उन्हे अपने परिवार की धुरी मानते थे। 

उनके बेटे और आज के विश्वविख्यात योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने आज मोक्षायतन अंतर्राष्ट्रीय योग संस्थान में संपन्न हुए स्मृति पर्व को संबोधित करते हुए कहा वाह मां कैसे करिश्मे कर दिए। खुद अनपढ़ रहकर पीएचडी और डी लिट पैदा कर दिए। वरिष्ठ फिजिशियन डा अशोक गुप्ता ने कहा कि सौ वर्ष की आयु में भयंकर ठंड में भी खुले कपाट सोने वाली मां जी गो सेवा, रोगियों की सेवा, अपरिग्रह और श्रमशीलता की ऐसी मिसाल थी कि उनके हाथों से बनाए हुए गोमाता के गोबर के उपले आज उनके निधन के बारह साल बाद भी हम साधकगण आश्रम में नियमित होने वाले यज्ञ में प्रयोग करते हैं। वह जब तक जीवित रही हवन के समय गुरुदेव स्वामी भारत भूषण जी के साथ बैठकर यज्ञ करती रही। 

जीवन पर्यंत दवाओं से दूर रह कर प्राकृतिक जीवन से स्वस्थ रहने वाली मां  रामकली अति श्रमशीलता के कारण उम्र के  आखिरी पड़ाव में स्पोंडलाइटिस और रेक्टल प्रोलैप्स की शिकार हो गई, लेकिन उन्होंने कहा कि  बच्चे जीवन भर मां पिता के ज्ञान और अनुभव का फायदा उठाते हैं, बड़े होने पर उन्हें बच्चों के  ज्ञान का लाभ उठाने में चूकना नहीं चाहिए। उन्होंने अपने बेटे स्वामी भारत भूषण ने योग साधना का लाभ लिया व योगाभ्यास की राह पकड़कर इन बीमारियों को भी धता बता दिया। आज साधकों ने सौ साल की उम्र में मां रामकली के योगाभ्यास व नृत्य के चित्रों की झांकी भी देखी। 

प्रख्यात राजनयिक, योग गुरु और कथक नृत्यांगना आचार्या प्रतिष्ठा का मानना है कि नृत्य और अथक श्रम के संस्कार उन्हें दादी मां रामकली जी से ही मिले। मां रामकली के पुत्रों में स्वामी भारतभूषण के अलावा दो बार राष्ट्रपति पदक पाने वाले पुलिस अधिकारी विद्यार्णव शर्मा और डा हर्षवर्धन शर्मा शामिल हैं। उन्हे भाव विभोर हो कर याद करते हुए योग गुरु भारत भूषण न कहा-

उम्र महज सालों की गिनती, 
उम्र बढ़े पर घटे न जीवन
सहज शिशु सा प्रतिपल मधुरिम
सीखा मां से करते हुए विनती।        
101 वर्ष का सफल जीवन 
और अंतिम पल स्वयं 
भूमि शय्या दिए जाने का आदेश
वाह मां हमारी रक्षा के पहाड़ सरीखी ओट। 
वरिष्ठ साधकों मंजू गुप्ता, सुभाष वर्मा, नंद किशोर शर्मा दिनेश गर्ग, राजीव दुआ ने उनसे जुड़े अनेक संस्मरण सुनाए और सभी ने पुष्पांजलि भेंट की। 

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