एडवोकेट नरेन्द्र मित्तल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
अधिकृत सरकारी रिपोर्ट (एनसीआरबी) के अनुसार पिछले वर्ष 2021 में जिन लोगों ने आत्महत्या की है, उनमें से एक चैथाई दैनिक मजदूर हैं। यह अभी तक की बड़ी संख्या है। 2021 में दर्ज हुए 164033 ;दैनिक मजदूरी पर कामद्ध से सम्बन्धित हैं, जिसका सीधा अर्थ यह है कि रोजाना मजदूरी करके गुजारा करने वाले मजदूर सबसे ज्यादा खतरे में हैं। दैनिक मजदूरी करके गुजारा करने वाले मजदूरों का प्रतिशत पिछले 8 वर्षों में 12 प्रतिशत बढ़ा है। इससे पूर्व 2019 के आंकड़े देखें तो आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या 139123 में से 32559 दैनिक मजदूर थे। अर्थात दो वर्ष पहले ही खुद को जान से मारने वाला एक चैथाई मजदूर था। अब यह दर बढ़के ऊपर पहुंच रही है।
मजदूरों की आत्महत्या का कारण देश में जीएसटी और नोटबंदी को माना जा रहा है। कोरोना ने आग में घी का काम किया। कोविड़ के दौरान मजदूरों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा था। नोटबंदी, जीएसटी और कोविड़ के कारण देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, ऊपर से भयंकर महंगाई से आम जनता तो परेशान है ही, मजदूरों का जीना मुश्किल हो गया है। केन्द्र ने कोविड़ की शुरूआत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त आनाज देने की घोषणा की थी, ;कितने पात्रों को आनाज मिला यह जांच का विषय है।द्ध परन्तु फिर भी मजदूर आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। ये गरीब खुद को बेसहारा महसूस कर रहे हैं।
गरीब मजदूरों का कहना है कि उन्हें दिनोदिन काम नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। कभी-कभी तो कई दिन तक काम नहीं मिलता तो उनके घर चूल्हा कैसे जले। मजदूरी पर जाते समय वे खाना लेकर जाते हैं। अक्सर दोपहर को उसे खाकर वापस लौट जाते हैं। देश के नीति निर्धारकों नेताओं के एजेंडे में गरीब मजदूर हैं भी नहीं इसके लिए मजदूर भी दोषी हैं, क्योंकि वे मजदूरों से पहले हिन्दू, मुस्लिम और जातियों में बंट जाते हैं, जिसका परिणाम वे भुगत भी रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश