भाग्य की विडम्बना ( लघुकथा)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पूजा अपने दुसरे पति के साथ अपनी बेटी को लिए माइके आयी तो आंसुओं का संमदर जलजला बन गया। पति की अकाल मृत्यु से जहाँ पूजा सुन्य बन गयी वहीं घरेलू पंचायत में अपने देवर के साथ शादी करने के फैसले से मन ही मन घुटने लगी। सामाजिक तोर पर देवर से विवाह एक बहुत ही सुझबुझ वाला निर्णय था लेकिन अनचाही पृकृति की मार एवं अनचाहे वर से घर बसाने वाली बात से पूजा बिल्कुल भी खुश नहीं थी उसे यह भी अच्छी तरह मालुम था कि इससे बढिया विकल्प ओर कोई हो भी नहीं सकता था। पूजा काफी पढीलिखी सुदर्शन एवं शादी से पुर्व एक अच्छे पद पर कार्यरत लङकी थी लेकिन धनाड्य परिवार में शादी होने के कारण शर्त के अनुसार उसे नौकरी छोड़ कर घरेलू औरत बनकर रहना पङेगा। सारे सुख एश्वर्य के साधन के कारण पूजा मान गयी, लेकिन अतीत को याद करते हुए जीवनभर अपनी बेटी को अच्छा इंसान बनाने तथा उच्च शिक्षित अधिकारी बनाना चाहती थी। ईश्वर की इच्छा एवं सामाजिक पारावारिक सहमति एवं दबाव के कारण देवर के साथ शादी करनी पङी। 
तीसरी माँ की छोटी बेटी झरना को अपनी दास्तान बताते बताते पूजा ने बताया कि नरसिंह पुर में मेरी जन्मदायिनी माँ अभी भी जीवित है लेकिन अपनी रिश्तेदार  को मुझे गोद दे दिया वो दूसरी माँ भी मेरे सामने लंबी बिमारी के बाद चल बसी तो भाग्य की विडम्बना देखो कि आज यह मेरी तीसरी माँ है तो मेरी सास चौथी माँ के बाद पांचवी भी बन गयी। झरना भी काफी पढीलिखी एवं समझदार थी बोली दीदी जीवन में कितने थपेड़े मैंने भी देखे जो तुम भी जानती हो कि कैसे माँ बाप भाग्य के अनुसार दोबारा मिलते हैं इसलिए हमें समाज का धन्यवाद करना चाहिए कि इतने बड़े संकटों के बावजूद हमें वो सबकुछ हासिल हो गया जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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