मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कुंदन मल औकात एवं ईश्वर प्रदत सौगात से कोसों दूर था फिर भी अपने आप को संभ्रांत एवं उच्च कोटि का मानने लगा जबकि शिक्षा साधारण होने के बावजूद विद्वान समझता था ऐसे अहंकार में इंसान एवं भगवान् से भी नीडर हो गया। घरवाले कहने लगे कुछ काम धंधा करने के लिए जुगाड़ कर वरना अपने बच्चों को लेकर कहीं भी चले जाना लेकिन हमारा पीछा छोड़ दो। अंहकार में डूबकर आंगन में दिवार खेंचकर एक कोठा रहने के लिए दे दिया चार बोरे अनाज एक एक लगभग सारा समान दे दिया तो अंहकारी कुंदन निरंकुश हो गया। अपने अनाज से कुछ बेचकर अपनी पत्नी एवं दोनों छोटे छोटे बच्चों को ससुराल छोड़ आया। दिन में छुपाकर भाभी खाना दे देती तो दोपहर में शहर जाकर पिक्चर देखकर ढाबे में खाना खाकर आधी रात में आकर सो जाता। सुबह चाय पीने के बहाने उस पार जाकर ईधर उधर की गप्पे मारने लगता।
एक दिन माँ बाप ने देखा कि काम कुछ करता नहीं अनाज भी बेचकर खा गया। अप्रत्यक्ष रूप से हायतौबा मचाया तो चौथी बोरी में थोड़ी सी बची बाजरी सरका कर भाभी को बोला कि यह रख लो। मैं मेरी पत्नी एवं बच्चों को लाने जा रहा हूँ आने तक यह दिवार भी हटवा देना मैं समझ गया कि माँ बापू का अहंकार खत्म हो गया होगा। पढ़े लिखे अर्जुन दास माथा पीटने के बाद बोले कि निठल्ले एवं अहंकारी ने पासा पल्ट दिया उल्टा हमें ही अहंकारी बता रहा है। दस दिन में चार बोरी अनाज नष्ट किया है जबकि तीन महीने तक आराम से खा सकते थे। अहंकार के सामने धैर्य जबाब दे गया।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम