भिखारी बनाम बिरला ( हास्य व्यंग्य)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
लाला चटकराम के घर आठवीं संतान के रूप में बेटा हुआ तो सब काफी खुश थे कि सात बहनों के बाद एक खानदान का वारीश पैदा हुआ है तो पंडित जी ने नाम के समय बताया कि भ पर नाम निकलेगा तो भीखाराम भंवर लाल भगवती प्रसाद आदि नाम सुझाये तो मनी भूआ बोली विचित्र नक्षत्रों में पैदा हुआ बच्चा इसलिए माँ बाप का नाम रोशन कर सकता है अथवा बेङा गर्ग तो पंडित जी ने कहा मुझे ओर भी बच्चों का नामकरण करवाना है तो चाची तिलतिली बोली कि इसको नजर ना लगे तो इसका नाम भिखारी रख दो। सब चूपचाप थे कि पंडित जी मंत्र बोलकर अपना झोला उठाया ओर चल पङे। आपस में काफी कहासुनी हुई तो फैसला किया गया कि स्कूल में इसका नाम बदल देंगे। 
बालक विलक्षण प्रतिभा शाली था इसलिए स्कूल में मंगतूराम लिखवा दिया। उस जमाने में रति तोला आधापाव पौना एक सेर सवासेर डेढ दो आढाई सेर होता था इसलिए स्कूल में भी ढोंचा पोंचा सीखाया जाता था। भिखारी झटाझट गणित के हर सवाल का जबाब दे देता। लेकिन चटकराम बेटियों की शादी करते करते कर्जदार बन गया बेटा भोलाभाला भजन कीर्तन करता लेकिन दिमाग अस्थिर हो गया तो आठवीं तक पढाई के बाद उसे दुकान पर बिठाने लगे लेकिन लफंगे एवं आवारा छोकरे छेङने एवं चिढाने से सब तंग आ गए। विद्वान दुनीचंद शर्मा पधारे तो चटकराम जाकर ने अपना दुख्ङा सुनाया तथा दो बातें तुरंत करने की सलाह दी। एक तो इसका विवाह करदो दुसरा इसका नाम बदल दो। शायद इसका भाग्य बदल जाए। 
दहेज उस समय चर्म पर था, लेकिन चटकराम एक साङी में नमूनी को बहू बनाकर ले आया नाम रखा कृष्ण कुमार ताकि संपन्नता आ सके लेकिन कृष्ण कुमार की दुकान  में ना कोई समान रहा ना ही ग्राहक। सात आठ साल में पांच पोतियां भी हो गई। जमीन बेचते बेचते चटकराम स्वर्ग सिधार गये। सास बहू के झगड़े में कृष्ण कुमार ऐसा फंसा कि बोला जब मेरा नाम भिखारी था तो मैं राजकुमार था स्कूल में मेरा नाम भले ही मंगतूराम था लेकिन मजे थे लेकिन जब मेरा नाम कृष्ण कुमार बिरला वाला रखा तो लगता है नाम बङे दर्शन छोटे। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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