जातीय जकडन में फंसे वेस्ट यूपी में उम्मीदवारों के चयन ने बढाई भाजपा की परेशानी

गौरव सिंघल, सहारनपुर। सपा-बसपा ने राजनीतिक चार्तुय दिखाते हुए जो उम्मीदवार घोषित किए है, उससे वेस्ट यूपी में जातीय जकडन बढ गई है। पहले से सर्तक भाजपा की परेशानी और बढा दी है। पिछला चुनाव लडे अपने तीन उम्मीदवारों गाजियाबाद से केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह, मेरठ से तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल और सहारनपुर से पिछला चुनाव बडे अंतर से हारे राघव लखनपाल को भाजपा आलाकमान ने अभी तक टिकट नहीं दिया है। मेरठ सीट पर अखिलेश यादव ने अनुसूचित जाति के भानू प्रताप सिंह को और मायावती ने देवव्रत त्यागी को टिकट दिया है। मुजफ्फरनगर, कैराना लोकसभा सीटों पर भाजपा तभी विपक्षियों को तगडी चुनौती दे पाएगी जब सहारनपुर सीट से वह राजपूत बिरादरी के किसी सशक्त और प्रखर हिदुत्व की छवि रखने वाले नेता को उम्मीवार बनाती है। वजह राजपूतों का दो कारणों से नाराज होना है। 

पहला पिछले विधान सभा चुनावों में मेरठ की सरधना सीट से संगीत सोम और शामली की थाना भवन सीट से गन्ना मंत्री सुरेश राणा की हार में जाटों की भूमिका का होना और दूसरे सम्राट मिहिर भोज की जातीय पहचान को लेकर गुर्जरों और राजपूतों के बीच बनी खाई जिसे लेकर सहारनपुर में कुछ समय पूर्व भारी तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई। पश्चिम की गन्ना पट्टी में जाटों के समीकरण तो भाजपा ने साध लिए है और साथ ही एक और अन्य जाट नेता मोहित बेनीवाल को एमएलसी बना दिया। साथ ही जयंत चौधरी के रालोद को गठबंधन में शामिल कर लिया। लेकिन भाजपा वैश्य बिरादरी और राजपूतों की नुमाइंदगी को भूल गई। ये समीकरण तभी नतीजा खेज साबित हो सकते है जब भाजपा गाजियाबाद और मेरठ से किसी उद्यमी अथवा प्रभावशाली व्यापारी और सहारनपुर से तगडे राजपूत को उम्मीदवार बना पाती है। इन दोनो बिरादरियों की मजबूत स्थिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर लोकसभा क्षेत्र में है। जो जातीयता प्रभावित पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निर्णायक रहेगी। 

भाजपा के लिए लाभ की स्थिति यह है कि उसकी केंद्रीय टीम में सुनील बंसल जैसा शख्स मौजूद है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नस-नस से वाकिफ है। सुनील बंसल की 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली भूमिका थी। इस स्थिति में भाजपा तभी सपा-बसपा की रणनीति का कारगर ढंग से मुकाबला कर पाएगी जब अमित शाह और सुनील बंसल बाकी बची सीटों पर अपने अनुभव और कौशल का इस्तेमाल करेंगे और सूझबूझ के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तीन बची महत्वपूर्ण सीटों सहारनपुर, मेरठ और गाजियाबाद के उम्मीदवारों के चयन में जरूरी जातीय संतुलन का ध्यान रखेंगे।

Post a Comment

Previous Post Next Post