मजदूरों की पीड़ा भाई (मजदूर दिवस पर विशेष)

डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 

प्रातः जल्दी मैं उठ जाता।
रामराम कह प्रभु गुण गाता।।
खेती करता पशु चराता।
धूपों से भी नही घबराता।।
रूखा सूखा बासी खाता।
दुख से अपना समय बिताता।।
मैकेनिक भी मैं बनकर के।
गाड़ी रोज सुधारा करता।।
चाय नाश्ता जो भी मिलता।
खा पीकर मैं काम चलाता।।
जान हथेली पर रखकर के।
वाहन भी मैं रोज चलाता।।
घांस काटता मेहनत करता।
बंधक बनकर काम करता।।
बड़ी खदानों में भी जाकर।
खनिजों का भंडार भरता।।
सागर के अंदर जाकर के
मोती रोज निकाला करता।
पर्वत की छाती को फाड़ूं
धातु रोज निकाला करता।
नदियों को मोड़ मोड़ कर
रोज सिंचाई मैं ही करता।
कुऐ बावड़ी मैं ही खोदूं
बड़े बांध भी खूब बनाता।।
बड़े बड़े तालाब रोककर।
नहरें भी मैं रोज बनाता।।
फसलें बोता हल चलाता।
खेतीहर मजदूर कहाता।।
होरी धनिया जैसा बनकर
सारा जीवन दाव लगाता।।
मंडी में भी बोझ उठाता।
खून पसीना भी बहाता।।
मंहगाई भी बड़ी लड़ाई।
ख़र्चे भी सब बढ़ते भाई।।
बड़े बड़े भवन बनाता।
फिर भी झुग्गी में मर जाता।।
साड़ी जेवर पत्नी मांगे
झूठे वादे दे भरमाता।।
बच्चों को भी नहीं पढ़ाकर
उनसे भी मैं काम कराता।।
कार पोंछते मशाल उठाते।
धनिक जनों के काम कराते।।
गन्दे नालों में भी गिरते।
पन्नी कागज़ बीना करते।।
पोषित भोजन को भी तरसे।
सिर पे गर्मी पानी बरसे।।
बच्चों मै कमजोरी आई।
वृद्ध पिता को नहीं दवाई।।
मज़दूरों की पीड़ा भाई।
जीवन भर है पेट लड़ाई।।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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