डॉ. शैलेश शुक्ला, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कभी गरियाते हैं,
तो कभी गले लगाते हैं
निज लाभ लोभ में
एक-दूजे को सहलाते हैं
एक पूरब एक पश्चिम,
एक उत्तर एक दक्षिण
देखो सब मिलकर अब
क्या-क्या गुल खिलाते हैं।
जनता को सदा छलते रहे
हक उनका ये निगलते रहे
विचारधारा मिले या न मिले
ये तेल में पानी मिलाते हैं।
करके वादा दिए के साथ का
हवा के साथ हो जाते हैं
अपने हित को नारों में
सदा जनहित ये बताते हैं।
एक-दूसरे को हमेशा ही
मौका मिलते ही नोचते रहे
देख शेर सामने अपने
गीदड़-गीदड़ मिल जाते हैं।
न कोई किसी की बहन
न कोई किसी का भैया
सबको बचानी है कैसे भी
अपनी-अपनी डूबती नैया
नकली वादे, नकली दावे
नकली इनके सब नारे हैं
लोकतंत्र का मजाक उड़ाते
ये लोकतंत्र के हत्यारे हैं।
मझगवाँ, पन्ना, मध्य प्रदेश
तो कभी गले लगाते हैं
निज लाभ लोभ में
एक-दूजे को सहलाते हैं
एक पूरब एक पश्चिम,
एक उत्तर एक दक्षिण
देखो सब मिलकर अब
क्या-क्या गुल खिलाते हैं।
जनता को सदा छलते रहे
हक उनका ये निगलते रहे
विचारधारा मिले या न मिले
ये तेल में पानी मिलाते हैं।
करके वादा दिए के साथ का
हवा के साथ हो जाते हैं
अपने हित को नारों में
सदा जनहित ये बताते हैं।
एक-दूसरे को हमेशा ही
मौका मिलते ही नोचते रहे
देख शेर सामने अपने
गीदड़-गीदड़ मिल जाते हैं।
न कोई किसी की बहन
न कोई किसी का भैया
सबको बचानी है कैसे भी
अपनी-अपनी डूबती नैया
नकली वादे, नकली दावे
नकली इनके सब नारे हैं
लोकतंत्र का मजाक उड़ाते
ये लोकतंत्र के हत्यारे हैं।
मझगवाँ, पन्ना, मध्य प्रदेश
Tags
poem