मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। बराक घाटी के हिंदू मुसलमानों की परवाह किए बिना असम के खिलंजिया या बंगाली को भूमिपुत्र का दर्जा दिया जाए। राज्यसभा सांसद और तृणमूल कांग्रेस नेता सुष्मिता देव ने आज तारापुर स्थित अपने घर पर एक संवाददाता सम्मेलन में यह मांग की। उन्होंने कहा कि अगर डाॅ. हिमंत बिस्वा शर्मा खिलंजिया हैं तो सुष्मिता देव भी खिलंजिया हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा और डाॅ. हिमंत बिस्वा शर्मा की सरकार हर दिन असम में बंगालियों के नागरिकोंका अधिकारों को छीन रही है। भेदभाव और अभाव का प्रमुख उदाहरण 'खिलंजिया' (मूल निवासी) का दर्जा है। खिलंजिया कौन है इसकी कोई कानूनी परिभाषा नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री अपनी मर्जी से आज एक समुदाय, कल दूसरे समुदाय के खिलंजिया बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह ऐसे गरिमा दे रहे हैं जैसे वह कानून हो।
सुष्मिता ने कहा कि मुख्यमंत्री ने नियम बनाया है कि अगर तीन पुरुष से आदमी नहीं हैं तो राज्य में उन्हें जमीन का पट्टा नहीं दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि यहां मंशा साफ है कि बंगालियों को किसी भी हालत में जमीन का अधिकार नहीं दिया जाएगा। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर बंगालियों का गुनाह क्या है। सुष्मिता ने कहा कि मुख्यमंत्री और भाजपा इस राज्य में किसी भी बंगाली के लिए, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम उन्हें पूर्ण नागरिक के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं।
उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि 1874 में सिलहट-गोवालपाडा के साथ असम का नया प्रांत बनाया गया था। उन्होंने कहा कि 1947 के जनमत संग्रह में सिलहट पाकिस्तान में चला गया और हिंदू बंगाली भारत चले आए। उन्होंने कहा कि यानी आज भाजपा और हिमंत जिन्हें बाहरी का जामा पहनाकर उनका अधिकार छीन रहे हैं, वे असम के ही मूल निवासी हैं और बंगाली मुसलमान तो यहाँ के ही निवासी हैं। उन्होंने कहा कि फिर कार्बी, अहोम या बोडो बंगाली भाईयों से कहाँ भिन्न हैं? उन्होंने कहा कि बराक के बंगाली हिंदू विभाजन से पहले असम में थे।
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