असम विश्वविद्यालय में मीडिया, संस्कृति और सामाजिक एल्गोरिदम पर दो दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। असम विश्वविद्यालय में 9 और 10 मई, 2024 को मीडिया, संस्कृति और सामाजिक एल्गोरिदम पर दो दिवसीय आईसीएसएसआर प्रायोजित संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का आयोजन जनसंचार विभाग द्वारा किया गया जिसके उद्घाटन सत्र में कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत जनसंचार विभाग के अध्यक्ष और सेमिनार के संयोजक डॉ. पार्थ सरकार के स्वागत भाषण से हुई। सेमिनार के मुख्य अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा थे। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शेखर चंद्र जोशी और बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक श्री निधिश त्यागी इस कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि रहे। वहीं विश्वविधालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर राजीव मोहन पंत और क्रिएटिव आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन स्टडीज के डीन प्रोफेसर सिवन जी ने मंच साझा किया। 

सेमिनार के उद्घाटन कार्यक्रम में प्रारंभिक टिप्पणी और परिचय में, प्रोफेसर जोशी ने बताया कि मीडिया संस्कृति और सामाजिक एल्गोरिदम भारत में डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाने से कैसे जुड़े हुए हैं और यह मीडिया क्षेत्र में भी प्रतिबिंबित हो रहा है। नागरिक पत्रकारिता ने दुनिया में एक क्रांति ला दिया है और वर्तमान समय में एल्गोरिदम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। निधिश त्यागी ने अपने भाषण में कहा कि पत्रकारिता के पुराने स्कूल से होने के कारण उन्हें यह मनोरंजक लगता है कि कैसे दुनिया भर के लोकतंत्रों में मीडिया द्वारा कुछ निश्चित स्वर और कथा निर्धारित करने के लिए सामाजिक एल्गोरिदम का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने असम के पारंपरिक गमोसा के लिए विभाग को धन्यवाद दिया और बताया कि उन्हें विभिन्न आयोजनों में इन्हें एकत्र करना कितना पसंद है। उन्होंने नवरस पर जोर दिया और बताया कि कैसे इस रस के माध्यम से संचार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मीडिया में सोशल एल्गोरिदम की भागीदारी से समाज के सामाजिक ताने-बाने पर व्यापक प्रभाव पड़ने वाला है। जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आगे बढ़ रहा है, मीडिया परिदृश्य में तेजी से बदलाव देखने को मिलेगा।
कीनोट सम्बोधन में , प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा ने सेमिनार के लिए विषय के चयन पर प्रसन्नता व्यक्त की और इसे मीडिया, संस्कृति और एल्गोरिदम के बारे में चर्चा करने के लिए अपने समय से बहुत आगे बताया, जो भविष्य में बहुत मददगार होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समय भले ही बहुत कुछ बदल गया हो लेकिन मूल्य वही हैं। उन्होंने कहा कि परिवर्तन आसन्न है और मीडिया और संस्कृति के क्षेत्र में सामाजिक एल्गोरिदम एक विशाल क्षेत्र है और संस्कृति और नीति की अवधारणाएं वह नहीं हैं जो औपनिवेशिक आकाओं ने हमारे पास छोड़ी हैं। एल्गोरिथम मुद्दे पर भारतीय दृष्टिकोण पश्चिम के दृष्टिकोण से बहुत भिन्न होगा। इस बीच प्रोफेसर राजीव मोहन पंत ने इस बात पर जोर दिया कि डीपफेक वीडियो के इस युग में मीडिया को दर्शकों तक सामग्री पहुंचाते समय सामाजिक जिम्मेदारी कैसे निभानी होगी। उन्होंने नोटबंदी के दौर में यूपीआई की भूमिका की याद दिलायी । प्रो.पंत ने माना कि इस नए मानदंड को अपनाना ही आगे बढ़ने का तरीका है। उद्घाटन सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एस.एम. अल्फ़ारिद हुसैन ने किया और सेमिनार और इसके विषय के प्रति उनके बहुमूल्य इनपुट और मार्गदर्शन के लिए मेहमानों को धन्यवाद दिया।

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