एडीएम वित्त ने मारा छापा, तहसील के क्वार्टर में सरकारी कामकाज करते पकड़ दो बाहरी व्यक्ति

शि.वा.ब्यूरो, खतौली। आज तहसील उस समय हड़कम्प मच गया, जब अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व गजेन्द्र कुमार ने बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक तहसील परिसर में कर्मचारियों को आवंटित क्वार्टर में छापामारी आरम्भ कर दी। वहां से उन्होंने दो लेखपालों के कमरों से प्राइवेट रूप से सरकारी काम कर रहे दो लोगों को पकड़ लिया।

तहसील में अपर जिला अधिकारी वित्त एवं राजस्व गजेंद्र कुमार ने तहसील में निरीक्षण के दौरान तहसील में लेखपाल अनिरूद्व के कमरे से गौरव और लेखपाल इन्द्रवीर के कमरे से संदीप नाम के युवक को सरकारी कामकाज करते पकड़ लिया। दोनों कर्मचारियों को पुलिस के हवाले कर दिया गया।

बता दें कि आज ही मंडलायुक्त डा. हृषिकेश भास्कर यशोद ने आज तहसील बेहट में अचानक छापेमारी की। इस दौरान उन्होंने लेखपालों के पास कार्य कर रहे कुछ प्राइवेट हेल्परों को रंगे हाथ पकडकर पुलिस के हवाले कर दिया। जिससे तहसील में खलबली मच गई। बताया जा रहा है कि एडीएम गजेन्द्र कुमार की उक्त कार्यवाही भी मण्डलायुक्त के आदेश पर ही की गयी है। 

तहसील प्रशासन से जुड़े एक कर्मचारी ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर दबी जुबान में बताया कि लेखपाल ही नहीं, बल्कि तहसील में अन्य कर्मचारियों व अधिकारियों ने सरकारी कामकाज के लिए प्राईवेट लोगों को लगा रखा है। उन्होंने बताया कि पूर्व में निवर्तमान तहसीलदार श्रद्वा गुप्ता ने उक्त की बाबत जिलाधिकारी के आदेशो के क्रम में एक पत्र जारी किया था, जिसमें उन्होंने सभी कर्मचारियों व अधिकारियों को आगाह किया था कि कोई भी अधिकारी या कर्मचारी प्राइवेट आदमी से सरकारी कामकाज नहीं करायेगा। 

मामले के जानकारों को कहना है कि उच्चाधिकारियों के आदेशों के बावजूद बाहरी व्यक्तियों से सरकारी कामकाज कराने का गोरखधन्धा तहसील प्रशासन की देखरेख में बेखौफ पनप रहा है, सम्भवतः इसी के मद्देनजर जनपद मुख्यालय से एडीएम को स्वयं इसके लिए छापामारी करनी पड़ी। जानकारों का यह भी मानना है कि कुछ चुनिन्दा लोगों को एडीएम के द्वारा छापामारी की सूचना पहले से प्राप्त हो गयी थी और वे सतर्क हो गये थे, वर्ना सरकारी काम करते बाहरी लोगों अन्य लेखपालों के कमरे से भी पकड़े जा सकते थे। 

एडीएम द्वारा की गयी छापेमारी से ये बात भी स्वतः सिद्ध है कि ये सब गोरखधंधा तहसील स्तर के अधिकारियों की मर्जी से चल रहा था या तहसील  स्तरीय अधिकारी इस पर रोक लगाने में विफल साबित हो रहे थे। मामला जो भी हो ये तो तय है कि तहसील स्तरीय अधिकारियों की जरूर गिरी है, जो चिन्ताजनक है। इतना ही नहीं इस तरह से सरकारी गोपनीयता तो भंग होती है साथ ही भ्रष्टाचार भी पनपता है।

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