सहारनपुर के आम और लीची की जीआई टैगिंग प्रक्रिया शुरू

 

गौरव सिंघल, सहारनपुर। सुगंधित एवं स्वादिष्ट बासमती और गन्ने की पहचान के लिए मशहूर सहारनपुर जनपद ने यहां की खास प्रजाति के आम जैसे रामकेला और इसी तरह मीठी, स्वादिष्ट और रस से भरी लीची को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रोत्साहित करने के लिए उनकी जीआई टैगिंग यानि खास भौगोलिक पहचान देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिलाधिकारी मनीष बंसल ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में सभी संबंधित विभागों के अधिकारियों की बैठक ली है और उनसे कहा है कि आम और लीची की स्थानीय प्रजाति खास गुणवत्ता रखती है उनको जीआई टैगिंग देने का काम किया जाए। जिला उद्यान अधिकारी के मुताबिक सहारनपुर जिले में 26 

हजार 500 हेक्टेयर रकबे में आम की बागवानी होती है और 2070 हेक्टयेर रकबे में लीची के बाग हैं। 


सहारनपुर जिले में आम की 191 प्रजातियां हैं। जिलाधिकारी मनीष बंसल ने और औद्योनिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र की उपनिदेशक पूजा को निर्देश दिए हैं कि वे यह देखें कि सहारनपुर की आम की कौन सी प्रजाति स्थानीय है और उसकी क्या विशेषता है। उन्हीं प्रजाति का चयन कर जीआई टैंग दिलाया जाएगा। इसी तरह देवबंद का पैंदी वाली बैर जो बहुत स्वादिष्ट और सुगंधित होता है को भी जीआई टैगिंग श्रेणी में लाया जाएगा। जैसे सहारनपुर देश और दुनिया में अपनी नक्काशीदार लकड़ी के हस्तशिल्प के लिए जाना जाता है। यहां के हैंडीक्राफ्ट को पहले से ही जीआई टैगिंग की पहचान मिली हुई है। सहारनपुर में आम, लीची और बैर जैसे फलों को लेकर जीआई टैगिंग श्रेणी में लाने की बहुत संभावना है। जीआई टैगिंग को ऐसे समझा जा सकता है जैसे आसाम की चायबनारस की साड़ीअलीगढ़ का तालाआगरा का पेठा।

 

जिलाधिकारी मनीष बंसल ने बताया कि जीआई टैग यानि भौगोलिक संकेत माल (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम 1999 के अनुसार जारी किए जाते हैं। यह टैग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के तहत भौगोलिक संकेत रजिस्टरी द्वारा जारी किया जाता है। जिलाधिकारी की इस नई पहल से यहां के आम और लीची के बड़े उत्पादक बहुत ही खुश हैं। देवबंद के अतुल जैन जिनके बाग की लीची उनके नाम से ही बाजारों में ऊंचे दामों पर एवं हाथों-हाथ बिक जाती है ने जिलाधिकारी के प्रयासों की खासतौर से सराहना की। अतुल जैन ने कहा कि अभी भी उनकी लीची की पूरे देश में ऊंची मांग है, लेकिन जीआई टैग मिलने से उसकी पहचान और मांग और भी बढ़ जाएगी।

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