डॉ. दशरथ मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
किरसानों के गांव में, इक छोटा परिवार ।
मजदूरी से पेट भरे, करता नशा अपार।।1
हट्टे कट्टे आलसी, भोजन को तैयार।
मां काली का नाम ले,दारू पिये डकार ।।2
तन को चिथड़े ढाकते, दोनों थे मक्कार।
घर में बरतन बस यही, माटी के दोचार ।।13
काम काज तो करे नही, बातें करें हजार।
घीसू की नारी मरी, दुखड़ा झेल अपार ।।4
झूठ सांच के कपट से, कीना माधो ब्याह ।
धरम करमको छोड़के,खुशियों की है चाह।।5
नई बहू के आवते, होता नित सत्कार।
लछमी जैसी बहुरिया, शोभा पाता द्वार।।6
बालपने में ब्याह से, मान हुआ था भंग।
कली फूल तो बनी नही, तड़पत है सबअंग ।7
झोंपड़िया पानी गिरे, चौमासे बरसात।
बिन कम्बल के ठंड सहि,बैरन होती रात।।18
दाल बनाइ एक दिना,पानी नाही संग।
हाडी में हल्दी नही, कैसे आवे रंग।। 9
ज्वार बाजरा पीसके, रोटी कीनी चार।
कुतिया सारी ले गई, घर में नाही द्वार । 10
बेटी भूखी सो गई,करती सोच विचार।।
रात पहाड़न सी लगे,पाया नही अहार 11
एक बरस के बीतते, बुधिया भारी पाव ।
लू लपट में काम किया, पाया नहि विश्राम ।12
प्रसव वेदना बड़ गई, कोई नाही संग।
खाने के लाले पड़े, हाथ रहा था तंग।13
बिटिया तड़पी रातभर, सुनता कौन पुकार |
जच्चा बच्चा मर गये, मचता हाहाकार ।14
चंदा मांगा गाँव में, रुपये हुए हजार।
पिता पूत खुशी खुशी, सीधे गये बजार 15
बेटी बुधिया मर गई, कफन न पाया अंग।
घीसू माधू झूमते, मधुशाला में संग।16
दिवाली से दमक रहे, दारू बोतल हाथ।
मछली अंडे खा रहे, कफन नही है साथ।17
प्रेमचंद तो कह गए, नशा नरक का द्वार।
नशा से बरबाद भये, देश धरम परिवार ||18
सौ सालों के बाद भी, आज वही है हाल।
नर पिशाच के कारणे, बेटी पिसती जाल।।19
बालविवाह न कीजिये, नहि बेमेल कबूल।
बीस बरस पढ़ाईये, अब मत कीजे भूल ||20
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश