तिरंगा यात्रा के साथ मनाई पंडित विश्वंभरसिंह की जयंती

गौरव सिंघल, सहारनपुर। आज के दिन 1907 में जन्मे पंडित विशंभर सिंह का की जन्म जयंती मोक्षायतन योग संस्थान और नेशन बिल्डर्स एकेडमी ने प्रेरक तिरंगा यात्रा निकाल कर मनाई। बिहार स्थित विशाल जलगोविंद मठ की महंताई ठुकराकर आजादी की लड़ाई में सक्रिय होने वाले इस अनोखे सेनानी का मानना था कि किसी भी मूल्य पर देश को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाना ही हम लोगों का मकसद है।  हमारा उद्देश्य जेल जाना नहीं मुल्क को आजाद कराने के लिए जीना और जरूरत पड़ने पर मरना भी था। वह कहते थे कि यदि केवल जेल जाना या फांसी खाना ही लक्ष्य होता तो लड़ाई चल ही नहीं सकती थी। वह कहते थे कि राष्ट्र पथ चलते हुए जो भी मिले यह भी सही वह भी सही। पंडित जी स्वातंत्र्य योद्धा और समाज सुधारक होने के साथ-साथ नगर के पहले शिक्षक थे जिन्हें सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन ने स्वयं अपने हाथों से राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से नवाजा था। देश आजाद होने के  बाद उनकी आजादी पाने की लड़ाई आजादी की रक्षा की लड़ाई में बदल गई थी। अनेक क्रांतिकारियों ने शिक्षक बनकर अपने आप को ब्रिटिश हुकूमत की नजर से बचाए रखने और नई पीढ़ी में आजादी के चिंगारी फूंकते रहने का कार्य किया था। शिक्षा, धर्म और देशप्रेम की त्रिवेणी पंडित विश्वंभर सिंह सभी धर्मपंथों का आदर करते थे शायद यही वजह थी कि सामाजिक जीवन में सभी को उनपर ऐसा यकीन था कि हाई कोर्ट तक मुकदमे लड़ने के बाद भी जटिल मुकदमों में लोग उनकी चौखट से न्याय पाते थे। 

पंडित जी के पुत्र और अंतरराष्ट्रीय योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने एक बार उन्हें पंडित विशंभर सिंह  के साथ अपने बचपन के नाते की चर्चा करते हुए बताया था कि उनका लड़ाई लड़ने का ढंग निराला था वह सक्रिय क्रांतिकारियों को संरक्षण देने और उनकी मदद करने में नहीं चूकते थे। चौधरी साहब ने बताया था कि हम लोगों ने पेंशन पाने के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी वह तो बस एक जज्बा था और हमारे गुरु महर्षि दयानंद सरस्वती की प्रेरणा थी। एक रोचक संस्मरण सुनाते हुए चरण सिंह जी ने बताया की आजादी की लड़ाई के दौरान पंडित जी ने एक बार तो मुझे पुलिस से बचकर अपने घर में बुगचे में लुको (छिपा) लिया था और गारद को बैरंग ही वापस जाना पड़ा था। ज्ञातव्य है कि पंडित जी बामनौली और चौधरी साहिब पडोस के गांव छपरौली के निवासी थे।

सादगी, सेवा, स्वाभिमान, स्वाध्याय और संस्कृति की रक्षा पड़ित जी की विशेषता थी। आजादी मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री बने डा संपूर्णानंद ने पंडित जी की पहल पर उत्तर प्रदेश में कक्षा 6 से 12 तक हिंदी के साथ अनिवार्य संस्कृत पढ़ने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। नगरपालिका में शिक्षक रहते हुए पहला राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान और देशहित में त्याग की बड़ी पहचान पाने वाले इस महापुरुष के सम्मान में भव्य पंडित विश्वंभर सिंह द्वारा व उन्हीं के नाम पर मार्ग का नामकरण करने का ऐसा गौरव का लिया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सहारनपुर आकर उस द्वारा का लोकार्पण किया जो शिक्षकों छात्रों और समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना रहेगा। आयोजन में बड़ी संख्या में छात्र व शिक्षकों के अलावा सुमन्युसेठ, डा अशोक गुप्ता, नंद किशोर शर्मा, मुकेश शर्मा एडवोकेट, सतीश चावला, पूनम वर्मा, केशव वर्मा, यश राणा, विजय सुखीजा और ललित वर्मा आदि मौजूद रहे, जिन्होंने पंडित जी से जुड़े संस्मरण सुनाए।

Comments