आधुनिक घुसपैठिए

डाँ. राजीव डोगरा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 

सदियों का संताप 
अब ठहर सा गया है।
घरौंदो से निकल कर 
आधुनिकता की दहलीज़ पर 
बह सा गया है।
तराशा हुआ आदमी 
महानगर की गुलामगिरी में
ढह सा गया है।
भौतिकता का घुसपैठिया    
नगर से गांव तक 
छा सा गया है।
विश्वबंधुत्व
मुआयने के शिखर में
बंगड़ मेघ की भांति 
रह सा गया है।
युवा कवि व लेखक गांव जनयानकड़ (कांगड़ा) हिमाचल
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