गंगा में डाल्फिन की संख्या बढ़ी

गौरव सिंघल, सहारनपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गंगा बैराज में वन विभाग के डाल्फिन की गणना में उनकी संख्या में एक साल में दो की वृद्धि हुई है। वन विभाग के आला अफसर ज्ञान सिंह ने  बताया कि पिछले वर्ष डाल्फिन की संख्या 50 थी जो अब 52 हो गई है। इनमें 47 वयस्क और 5 अव्यस्क है। सहारनपुर परिक्षेत्र के पूर्व वन संरक्षक विरेंद्र कुमार जैन ने बताया कि डाल्फिन ध्वनि और जल प्रदूषण सहन नहीं कर पाती है। गंगा में रासायनिक प्रदूषण हटा है। जिस कारण गंगा में बिजनौर गैराज से नरोरा बैराज के 225 किमी तक डाल्फिन के लिए माफिक स्थितियां है। जैन ने बताया कि डाल्फिन और उसके बच्चें रोज सू-सू की आवाज करती हुए गंगा में ऊपर सतह तक आ जाते है और अठखेलियां करते है। यह आंखों को सुखद अनुभव दे रहा है। डाल्फिन हर दो मिनट पर सांस लेने के लिए पानी के ऊपर आ जाती है और उछाल लेती है। 

विरेंद्र जैन ने बताया कि डाल्फिन के लिए रीवर फार लाइफ दिनांक 22 मार्च 2015 विश्व वन्य द्वारा शुरू किया गया था। गंगा नदी क्षेत्र डाल्फिन का सुरक्षित आवास बन गया है। डाल्फिन भारत में संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2020 को डाल्फिन को संरक्षित करने की परियोजना की घोषणा लाल किले से की थी। डाल्फिन को 5 अक्टूबर 2009 को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया था। यह मछली नहीं स्तनधारी जीव है। जैव विविधता संरक्षण और गंगा क्षेत्र के लोगों को प्रदूषण के प्रति जागरूक किए जाने से और मछुआरों द्वारा शिकार नहीं किए जाने से गंगा डाल्फिन के लिए सुरक्षित और उसकी संख्या में वृद्धि किए जाने में सहायक साबित हुई है। डाल्फिन को सोंइस भी कहते है। लोगों में बढती जागरूकता के नतीजे में गंगा में डाल्फिन के साथ-साथ कछुए, घडियाल और मगरमच्छ की संख्या भी बढी है।  

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