गौरव सिंघल, देवबंद। जामिया तिब्बिया के ताहिर हॉल में प्रख्यात आलिम-ए-दीन मौलाना नदीम उल वाजिदी के इंतकाल पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध शायर डा0 नवाज़ देवबन्दी ने की। शोक सभा का प्रारम्भ कारी मुहम्मद वासिफ के तिलावते कलाम पाक से किया गया। शोक सभा में वक्ताओं ने मौलाना नदीम उल वाजिदी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके बारे में अपने विचार व्यक्त किये। लेखक सय्यद वजाहत शाह उर्फ कमल देवबन्दी ने अपने सम्बोधन में कहा कि मौलाना नदीम उल वाजिदी बहुत ही नेकदिल इंसान थे उन्होंने अपने जीवन को बहुत ही सादगी के साथ बिताया। उन्होंने कभी भी छोटे-बडे का भेदभाव नहीं किया बल्कि छोटों के साथ छोटे एवं बडों के साथ बडे बनकर रहते थे। कांग्रेस के प्रदेश सचिव राहत खलील ने कहा कि मौलाना का देहान्त हम सब के लिए नहीं बल्कि पूरे आलम-ए-दीन के लिए दुख की घडी है। जिसकी पूर्ति होना नामुमकिन है।
प्राचार्य प्रो. अनीस अहमद जामिया तिब्बिया ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बहुत ही मिलनसार थे। वह अरबी के बडे विद्धवान थे। उन्होंने अपने उर्दू और अरबी ज़बान में दारूल उलूम के परिचन में कई किताबें लिखी। इसके अतिरिक्त अरबी ज़बान का ज्ञान देने के लिए एक सेंटर की स्थापना की। यू0पी0 राब्ता कमैटी के सचिव डा. उबैद इकबाल आसिम ने कहा कि मौलाना नदीम उल वाजिदी बहुत ही सादा जीवन व्यतीत करते थे। मौलाना बडे अख्बरात व पत्रिका के मशहूर कलम निगार थे। देवबन्द में दीनी किताबों की प्रकाशन का बडा सिलसिला है। कुतुबखाने बहुत ही सादा और मामूली हुआ करते थे। मौलाना नदीम उल वाजिदी ने दारूल किताब को किताबों पुरकशिश मार्डन शोरूम बनाया तो लोगों ने इस रिवाज को आगे बढ़ाते हुए एक से एक शोरूम बना दिये। जिसका श्रेय भी मौलाना को जाता है।
डा. अनवर सईद ने कहा कि मौलाना नदीम उल वाजिदी बडे आलिम व मुसन्निफ होने के बावजूद बहुत ही मिलनसार शख्सियत थे। उन्होंने लगभग 80000/- ओराक लिखे। मौलाना का जन्म 23 जुलाई सन 1954 को मौलाना वाजिद हुसैन रह0 साबिक शेख उल हदीस के घर में हुआ था। मौलाना नदीम उल वाजिदी का देहान्त कल शिकागो (अमेरिका) में हुआ। उन्होंने एक वक़्ता के रूप में असंख्य लेख लिखे एवं सेमिनार, जलसों व कार्यक्रमों में भाग लिया। उनके लेख देश के प्रसिद्ध समाचार एवं पत्रिकाओं दारूल उलूम, नया दौर, हुमा, अल्जमियत आदि में प्रकाशित हुये। उन्होने लम्बे समय तक स्वयं के सम्पादन में उर्दू मासिक पत्रिका तर्जुमाने देवबन्द का सफल प्रकाशन किया। 70 साल की संघर्षशील बेमिसाल ज़िन्गी गुज़ारकर इस दुनिया से रूखसत हो गए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात शायर डा. नवाज़ देवबन्दी ने कहा कि मौलाना नदीम उल वाजिदी से मेरा सम्बन्ध बहुत गहरा था। वह हमारे दोस्तों में थे और अक्सर जो कोई भी मुझसे दीनी और इल्मी सवालात के बारे में पूछता था तो मैं मौलाना से उनका जवाब मालूम करके पूछे गये सवालों का जवाब आगे देता था। डा. नवाज देवबन्दी ने कहा कि उनका जाना आलम दीन के लिए बडा खसारा है जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। इसके अतिरिक्त मुफ्ती मौहम्मद आरिफ, अशरफ उस्मानी, फहीम नम्बरदार, अनस सिद्दीकी सचिव ईदगाह कमैटी, मुफ्ती मौ0 वासिफ, अब्दुर्रहमान, जावेद अंसारी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।