शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। एसडी काॅलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में आज आईक्यूएसी के तहत इन्र्फोमेटिंव क्लब के अन्तर्गत उद्योग जगत में रतन टाटा का महत्वपूर्ण योगदान विषय पर कार्यक्रम का आयोजन एवं उसका वर्णन एक डाॅक्यूमेंट्री दिखाकर किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ काॅलेज प्राचार्य डा0 संदीप मित्तल व विभागाध्यक्ष राजीव पाल सिंह ने किया। काॅलेज प्राचार्य डा0 संदीप मित्तल ने कहा कि रतन टाटा भारतीय उद्योगपति थे, जिन्होंने टाटा समूह और टाटा संघ के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने कहा कि टाटा समूह भारत की सबसे बड़ी व्यापारिक इकाई है। टाटा ने अपनी संपत्ति से कई कंपनियों में निवेश किया था। उन्होंने भारत की प्रमुख ई-काॅमर्स वेबसाइटों में से एक स्नैपडील में निवेश किया। उन्होंने कहा कि जनवरी 2016 में उन्होंने टीबाॅक्स, एक आॅनलाइन प्रीमियम भारतीय चाय विक्रेता और कैशकरो डाॅट काॅम एक डिस्काउंट कूपन और केश बैक वेबसाइट में भी निवेश किया। उन्होंने कहा कि रतन टाटा का जन्म 28 दिसम्बर 1937 को ब्रिटिश राज के दौरान बाॅम्बे, अब मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंने कहा कि वह नवल टाटा के बेटे थे, जिनका जन्म सूरत में हुआ था और बाद में उन्हें टाटा परिवार में गोद ले लिया गया था। उन्होंने बताया कि हाई स्कूल के बाद टाटा काॅर्नेल विश्वविद्यालय गए और वहाँ से स्नानक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने बताया कि काॅर्नेल में रहते हुए, वह अल्फा सिग्मा फी बिरादरी में शामिल हो गऐ। 2008 में, टाटा ने काॅर्नेल को 50 मिलियन डाॅलर का दान दिया, जिससे वह इतिहास में विश्वविद्यालय का सबसे बडा अंतर्राष्ट्रीय दानकर्ता बन गये।
उन्होनें टाटा नैनो कार की अवधारणा भी तैयार की और इसके विकास का नेतृत्व किया, जिससे कारों को औसत भारतीय उपभोक्ता की पहुंच में लाने में मदद मिली। उन्होंने बताया कि 21 वर्षो तक टाटा समूह का नेतृत्व करते हुए राजस्व 40 से अधिक और लाभ 50 गुना से अधिक बढ गया। उन्होंने बताया कि जब रतन टाटा ने कंपनी की कमान संभाली तो अधिकांश बिक्री कमोडिटी बिक्री थी, लेकिन उनके कार्यकाल के अंत तक अधिकांश बिक्री ब्रांडो से हुई। उन्होंने बताया कि टाटा मोटर्स ने जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण किया, और टाटा को मुख्य रूप से भारत-केंद्रित समूह से एक वैश्विक व्यवसाय में बदल दिया, जिसका 65 प्रतिशत से अधिक राजस्व अंतरराष्ट्रीय परिचालन और बिक्री से आता था।
विभागाध्यक्ष राजीव पाल सिंह ने बताया कि 1970 के दशक मे, रतन टाटा को टाटा समूह में प्रबंधकीय पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने बताया कि वह शुरू में सहायक कंपनी रेडियो एंड इलेक्ट्राॅनिक को पुनर्जीवित करने में सफल रहे, लेकिन आर्थिक मंदी के दौरान यह विफल हो गई। उन्होंने बताया कि 1991 में जेआरडी टाटा ने टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने बताया कि प्रारंभ मे रतन टाटा को विभिन्न सहायक कंपनियों के प्रमुखों से मजबूत प्रतिरोध का सामना करना पडा, जिनके पास वरिष्ठ टाटा के नेतत्व में महत्वपूर्ण परिचालन स्वायत्तता थी। उन्होंने बताया कि रतन टाटा ने शक्ति को मजबूत करने के उद्देश्य से कई नीतियां लागू की, जिनमें सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करना, सहायक कंपनियों को समूह कार्यालय में रिपोर्ट करना और सहायक कंपनियों को टाटा समूह ब्रांड के निर्माण में अपने मुनाफे का योगदान करने की आवश्यकता शामिल थी। उन्होंने बताया कि रतन टाटा ने नवाचार को प्राथमिकता दी और युवा प्रतिभाओं को कई जिम्मेदारियाँ सौपी। उन्होंने बताया कि उनके नेत्तत्व में सहायक कंपनियों के ओवरलैपिंग संचालन को कंपनी व्यापी संचालन में सुव्यवस्थिन किया गया, साथ ही साथ वैश्रवीकरण पर ध्यान केंद्रित करने कें लिए असंबन्धित व्यवसायों को छोड दिया।
इस अवसर पर बीबीए विभाग से डा0 संगीता गुप्ता, दीपक गर्ग, मौ0 अन्जर, संजय शर्मा, सोनिका, अभिषेक बागला, प्रशांन्त गुप्ता, विनिता चैधरी, आदि शिक्षकों व स्टाॅफ उपस्थित रहे।