शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। मेरा वजूद फाउण्डेशन एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग के तत्वाधान में विद्यार्थियों की सफलता में स्वस्थ मन एवं संस्कारों की भूमिका कार्यशाला का आयोजन लाला जगदीश प्रसाद सरस्वती विद्या मंदिर इण्टर कॉलेज के सभागार में की आयोजित की गयी। कार्यशाला का शुभारम्भ मुख्य अतिथि डॉ0 राजेश कुमार श्रीवास जिला विद्यालय निरीक्षक, मुख्यवक्ता स्वामी तेजाश्वरानंद शिक्षाविद एवं सन्यासी, समृद्धि त्यागी, कार्यक्रम अतिथि डॉ0 राकेश राणा, डॉ0 अरूण कुमार, डॉ0 अखिलेश शर्मा, डॉ0 रणवीर सिंह, पं0 सजीव शंकर, पंकज धीमान, प्रवेन्द्र दहिया, प्रेरक जैन एवं जिला कोर्डिनेटर आशीष द्विवेदी ने दीप प्रज्जवलि कर किया। कार्यशाला में जिले के लगभग 130 विद्यालयों विद्यालयों के प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों ने प्रतिभाग किया और सभी को अतिथियों द्वारा कार्यशाला प्रतिभागिता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ0 रणवीर सिंह ने किया। स्वामी तेजाश्वरानंद ने बताया कि आज की शिक्षा में विद्यार्थियों की सफलता में स्वास्थ्य मन व संस्कारों की भूमिका जो दो शब्दों का महत्वपूर्ण आकर्षक है मन और संस्कार। यदि मन स्वस्थ नहीं है तो हम मानसिक रूप् से बीमार रहते है और हमारी सोचने व करने की क्षमता पर प्रभाव पडता है। 

संस्कार के विषय में बताते हुए कहा  कि संस्कार कठिन विषय होते हुए भी वार्ता के द्वारा हम सरल बना लेते है। शरीर आत्मा का स्वामी होता है। हम मन के द्वारा अच्छे और बुरे संस्कार ग्रहण करते है। मन एक मशीनरी है और मन हमारा मित्र और शत्रु भी होता है। मन ही बंधन का कारण है और मन  ही मोक्ष का कारण है, उदाहरण देते हुए बताया कि मन के हारे हार, मन जीते जीत। मन दो भागों में बटा हुआ है जड और चेतन। मन तीन कणों से बना होता है सत, रज और तन। अंत में बताते हुए कहा कि यदि मन पर मल आ गया है तो कुसंस्कार जाग्रत होते है। मन के मल को प्रणायामक एवं योग के द्वारा हटाया जा सकता है।  
मुख्य अतिथि राजेश कुमार श्रीवास द्वारा बताया गया कि स्वस्थ मन और सस्कारों का महत्व सबसे पहले माँ ही देती है इसके बाद संस्कार विद्यालय और समाज देता है। समृधि त्यागी ने बताया कि मन और संस्कार का निर्माण विद्यालय में ही होता है। आज की नई युवा पीढी में संस्कारों की कमी है उदाहरण देते हुए एक लडकी की इच्छा थी कि मैं शादी अपने मन से ही करूगी यदि जब ऐसा नहीं हुआ तो उसने बडों मम्मी, पापा, दादा, दादी को थप्पड मार दिया इसी से पता चलता है कि संस्कारों की बहुत कमी है, संस्कार देने में अभिभावक और अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अभिभावक एवं अध्यापकों को बच्चों की भावना का समझना चाहिए और बच्चों को स्कूल में संस्कारों की शिक्षा देनी चाहिए। एक अच्छा अध्यापक वहीं होता है जो एक अच्छे संस्कार सिखा दे और बच्चे हमेशा याद रखे, तभी आप सफल शिक्षक माने जाते है। 
डॉ0 अरूण कुमार ने बताया कि विद्यार्थियों की सफलता एवं संस्कार ही हमारे देश की नींव को मजबूत करता है। शिक्षक एक मंच का कलाकार भी होता है उदाहरण देते हुए बताया कि जब हम तीन घण्टे फिल्म देखते समय पलक नहीं झपकते उसी प्रकार शिक्षक को कक्षा में शिक्षण करते समय पलक नहीं झपकनी चाहिए और हमें अपने आप में परिवर्तन करना होगा तभी हम छात्र को गलत संगत से बचा सकते है और हम जैसे है वैसे ही दिखने चाहिए। असंभव कुछ नहीं संभव सब कुछ है। यदि जिन्दगी में सफल होना है तो किसी बात को लेकर समझौता नहीं करना चाहिए। अंत में उन्होंने बताया कि छात्रों को अपने बच्चों की तरह प्यार करना चाहिए क्योंकि विद्यार्थियों को जब शिक्षक में अपन्तव लगता है तब वह शिक्षक को अपना आदर्श मानता है साथ ही साथ उसकी डांट फटकार को भी सहन करके शिक्षक से लगाव रखता है। 
डॉ0 राकेश राणा ने बताया कि समाज में छोटे बच्चों की अपेक्षा बडों बच्चों को समझाना कठिन होता है भारत एक ऐसा देश है जो संस्कार और स्वास्थ्य की चिंता कर सकता है। अन्य देश ऐसा नहीं सोचते। भारत का एक ध्येय है वह अध्यात्मिक विकास करता है जबकि पूरी दुनिया में ऐसा किसी भी देश में नहीं मिलता, यह भारत की मातृभूमि में ही मिलता है भारत में ही उन्नत और समर्थ और शक्तिशाली सम्बन्ध सामाजिक अनुसंधान का निर्माण करता है। समाज एक बाजार है इस बाजार में हमें अच्छे संस्कारवान एवं स्वास्थ्य वाले बच्चों का निर्माण करना है। 
अंत में मेरा वजूद फाउण्डेशन के संरक्षक पं0 संजीव शंकर ने सभी अतिथियों, प्रधानाचार्यों एवं शिक्षकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा वजूद फाउण्डेशन समाज में अग्रणी संस्था होकर विभिन्न विद्यालयों में मेंटल हेल्थ एवं संस्कारों के लिए निःशुल्क कार्यक्रम करवा रहा है।
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